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पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/२८१

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पुरुष का विवाह कम बुद्धि वाली या मूर्ख स्त्री के साथ होता है उसके साथ बुद्धि-विकाशके सम्बन्ध में गले से बोझल पत्थर लटका देने के समान है; क्योंकि उस दशा में समाज के द्वारा निश्चित किये विचारों पर उसे चलना ही पड़ता है। उस में जो कुछ उच्च बनने की महत्वाकाङ्क्षा होती है उसे उसकी स्त्री दबा रखती है। ऐसे बन्धनों से जकड़ा हुआ पुरुष उदार विचारों और सद्गुणों का अनुभव नहीं कर सकता। उत्तम विचारों के अनुसार अपना व्यवहार रखना, और उच्च श्रेणी के गुणों को प्राप्त करना, उसके लिए अशक्य हो जाता है। यदि उसके विचार मामूली आदमियों के विचारों से ऊँचे हों—अर्थात् जिस सत्य का प्रकाश साधारण मनुष्यों के अन्तःकरण पर नहीं होता यदि उस ही सत्य के दर्शन उसने कर लिये हों, या जिस सत्य को बहुधा लोग केवल बातों में ही मान कर छोड़ देते हैं, उसके समान अपना व्यवहार करके दिखाना चाहता हो; अर्थात् यदि वह सच्चे हार्दिक विचारों के अनुसार ही अपना प्रत्यक्ष व्यवहार भी बनाना चाहता हो तो वह अपने विचारों के अनुसार व्यवहार नहीं कर सकता,-विवाह-बन्धन के असङ्गत होने के कारण उसे अपने ऊँचे से ऊंँचे विचार मन के मन ही में दाब रखने पड़ते हैं। सौभाग्य से यदि उसके जैसे विचारों वाली ही स्त्री उसे मिलती है तभी वह अपने विचारों के अनुसार अपना जीवन बना सकता है—अन्यथा वह कुछ भी नहीं कर सकता।