पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/२८०

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रहने वाली स्त्री स्वावलम्बन की क़ीमत कैसे समझ सकती है? क्योंकि सब से पहले तो स्त्रियों को किसी प्रकार की आज़ादी ही नहीं होती, तथा स्वावलम्बी बनने का रास्ता उनके लिए खुला होता ही नहीं, फिर उनकी समझ ऐसी बना डाली जाती है कि स्वामी जो कुछ दे वही मात्र तुम्हारा है—तथा इसी स्थिति में सन्तोष मान कर वे अपने दिन टेर करती हैं। इसलिए जो बातें ख़ुद उन्हें अच्छी मालूम होती हैं, वे ग़रीब लोगों के लिए हानिकारक होती होंगी, इसका ख़याल ही कहाँ से आ सकता है? उनकी समझ इस प्रकार की बन जाती है कि अपने स्वामी या कुटुम्बियों से जो चीज़ उन्हें मिलती है वह अच्छी ही होती है। किन्तु स्त्रियाँ इस बात को बिल्कुल ही भूल जाती हैं कि हम पराधीन हैं और ग़रीब लोग स्वाधीन है। और फिर यह तो एक सीधी सी बात है कि सब चीज़ें यदि गरीबों को बिना मिहनत के मिलने लगें तो फिर उन्हें मिहनत करने की ज़रूरत ही क्या है? इस के साथ ही यह बात भी ध्यान में रखनी चाहिए कि प्रत्येक मनुष्य के उदर-निर्वाह का भार दूसरा नहीं ले सकता, इसलिए अपने निर्व्वाह का ख़याल ख़ुद ही को होना चाहिए। किन्तु जब बिना सोचे-समझे वे ही लोग दानधर्म्म से आर्त्त मनुष्यों के रखवाले हों तो उन्हें अपने जैसों का ख़याल रखना योग्य ही है। इन कारणों से सशक्त-शरीर-व्यक्ति भी अपने हम-ख़यालों से अपना पालन-पोषण करवाते