घटना प्रत्येक कुटुम्ब में घटा करती है, इस प्रकार का असन्तोष प्रत्येक गृहिणी के मन में होता है। बहुत सी स्त्रियाँ अपने इस भाव को शब्दों में प्रकट करती हैं और बहुत सी मन ही मन इसे दबाये रहती हैं। इस प्रकार की आन्तरिक स्थिति होने के कारण आज-कल लोगों का शिष्टाचार निम्न श्रेणी का है––किन्तु इस में आश्चर्य की कोई बात नहीं है।
१५––अनेक कार्यों में स्त्रियों को अनधिकारी मानने से स्त्री-पुरुषों के शिक्षण और व्यवहार में जो भेद हो जाते हैं उनकी हानि का विचार एक और दूसरे केन्द्र-बिन्दु से भी किया जा सकता है। विवाह बन्धन का सबसे अधिक महत्व का उद्देश, कहा जाता है, उनके विचार और वृत्तियों का ऐक्य हो जाना; किन्तु ऊपर बताया हुआ भेद इस वृत्ति से बिल्कुल उलटा होता है। एक दूसरे से सर्वथा भिन्न दो व्यक्तियों के सम्बन्ध से ऐक्य की आशा रखना भूल है––भ्रान्ति है। यह हो सकता है कि विषम प्रकृति वाले मनुष्य एक दूसरे का आकर्षण करें, किन्तु ऐक्य-साधन करने वाली तो प्रकृति की साम्यता ही है। इसलिए उन व्यक्तियों की समानता जैसे-जैसे बढ़ती जायगी वैसे ही वैसे वे एक दूसरे का जीवन अधिक सुखमय बनाने के योग्य होते जायँगे। जब तक स्त्री-पुरुषों की भिन्नता स्थिर रहेगी तब तक स्वार्थी पुरुषों के मन में अधिकार अपने हाथ में रखने की ही धुन समाई रहेगी,––क्योंकि जहाँ मित्रता होती है वहाँ वृत्तियों का ऐक्य कभी सम्भव