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पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/२८८

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नहीं होता; और इसके द्वारा उत्पन्न होने वाली पारस्परिक विरुद्धता को मिटाने के लिए इस अधिकार का अपने हाथ में रखना पुरुषों को अच्छा लगता है कि जो कुछ हम कहें वही क़ायदा है। क्योंकि यदि ऐसा न किया जाय तो प्रत्येक प्रश्न उनकी मन्शा के मुताबिक़ कैसे हो सकता है? फिर तो लड़ाई-झगड़े पर ही नौबत पहुँचे! जो व्यक्ति एक दूसरे से भिन्न हैं उनके हित का ऐक्य होना अशक्य है। अपने-अपने कर्तव्यों के योग्य महत्व के विषयों में विवाहित स्त्री पुरुषों में मतभेद होता है, और जहाँ यह घटता है वहाँ सचमुच ऐक्य कैसे सम्भव है? फिर यह बात भी नहीं है कि यह घटना कभी कहीं ही घटती हो––बल्कि घर-घर यही हाल है, और ख़ास करके जिस घर में स्त्री कुछ विशेष गुणवती होती है वहाँ तो रोज ही यह बात रहती है। जहाँ-जहाँ रोमन कैथोलिक सम्प्रदाय प्रचलित है वहाँ विशेष करके यही प्रकार घटता रहता है। साधारण रीति से ऐसे पति-पत्नी में धार्मिक मतभेद ही होता है, फिर पत्नी को धर्मोपदेशकों से उत्साह मिलता रहता है––क्योंकि संसार में पति के अलावा और किसी को सम्मान देने का अधिकार स्त्रियों को है तो धर्मोपदेशक-वर्ग को ही है। इस प्रकार स्त्रियों के हार्दिक विचारों पर धर्मोपदेशकों का जो अधिकार होता है वह प्रोटेस्टैण्ट पन्थ के उपदेशकों और लेखकों को नहीं रुचता––क्योंकि सत्ताधीश वर्ग को यह अच्छा नहीं लग सकता कि, कोई उन