होगा। हिन्दू-समाज को शीघ्र ही इस परिवर्तन को तेज़ धार में बहना होगा––इसलिए उसकी सन्तान के हाथ में हम तत्त्ववेत्ता मिल के विचार रखते हैं। यद्यपि आज हिन्दू समाज के लिए ये विचार कुएँ में बैठे हुए मनुष्य के लिए हिमालय की एवरेस्ट चोटी के समान है। किन्तु वह समय अधिक दूर नहीं है जब हमें इस मार्ग पर चलना होगा।
मिल की वर्णन-शैली और रचना-पद्धति बड़ी क्लिष्ट है। बहुत कुछ सरल करने पर भी भाषा में भावों की क्लिष्टता रही ही है। मिल संसार के उन दूरदर्शी महात्माओं में से है जिनकी संख्या इस धराधाम पर अत्यल्प होती है। मिल आधुनिक संसार का ऋषि है। और एक ऋषि जैसे संसार को आगे से आगे सचेत कर देता है वैसे ही मिल की भी यह गम्भीर वाणी है। मिल की एक पुस्तक "स्वाधीनता" के नाम से सरस्वती-सम्पादक श्रद्धेय पं॰ महावीरप्रसाद जी द्विवेदी लिख चुके हैं। उसके दो संस्करण हुए हैं। यह मिल को दूसरी पुस्तक मातृभाषा के मन्दिर में, आज मैं रखने का साहस करता है। यदि यह मेरे समाज के विचारों में कुछ भी परिवर्तन कर सकी तो मैं अपना श्रम सफल समझूँगा।
देहली, |
शिवनारायण द्विवेदी। |
फरवरी, १९१६ ई॰ |