पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/३०६

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वे स्वाधीनता-पूर्वक नहीं कर सकतीं;––हम बात को यदि माफ़ शब्दों में कहें तो यह हो सकता है कि, जो काम पुरुषों से नहीं हो सकते या जिन के करने से उन्हें घृणा होती है, उन्हीं कामों के करने की औरतों को पूरी आजादी दी गई है। इन बातों से भीतर ही भीतर कितनों को कष्ट भोगना पड़ता हो सो शायद ही किसी के ख़याल में आता हो। इस बात की और किसी का ध्यान नहीं जाता कि, इस अमानुषी प्रथा से कितने योग्य जीवन व्यर्थ चले जाते होगे और संसार को उनसे अणुमात्र भी लाभ नहीं होता। स्त्रियों की शिक्षा का प्रसार जैसे-जैसे अधिक होता जायगा, स्त्रियों के मन जैसे-जैसे विशेष जान-सम्पन्न और बुद्धिशाली बनते जायँगे––वैसे ही वैसे उनके विचार और उनकी बुद्धि बढ़ेगी। इसका परिणाम यह होगा कि समाज ने स्त्रियों के लिए जिन दरबाजों को बन्द कर रक्खा है उनके कारण असङ्गतता का प्रसार होगा और इसके कारण संसार के कष्ट की वृद्धि होगी। रूढ़ि के लिए यही परिणाम होगा।

२२––इस प्रकार मनुष्य समाज के बिल्कुल आधे भाग की अनधिकारी बना देने से उसकी जो प्रत्यक्ष हानि हो रही है वह इस प्रकार है;––एक तो वे हिम्मत दिलाने वाले और तरक्की करने वाले व्यक्ति-सुख मे-वञ्चित रहती हैं। दूसरे इसके कारण खिन्नता, निरुत्साह होता है और उन्हें जीवन पर तिरस्कार आता है, मन उचटा रहता है। इन सब अनिष्टों