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पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/३६

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समाज के बड़े भारी प्रवाह को दूसरी ओर घुमा देने के लिए मैं जो तैयार हुआ हूँ,-मैं समझता हूँ कि केवल शब्दों के द्वारा वह प्रतिपादित नहीं होगा। मैं समझता हूँ कि मेरा काम कठिन है। जिस कठिनता की बात मैं कह चुका हूँ उसका अर्थ यह नहीं है कि मैं अपने सिद्धान्त की पुष्टि के लिए जो उदाहरण, जो दलीलें दूँगा वे सबल या स्पष्ट नहीं हैं। बल्कि मुझे इस काम में वैसी ही कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा, जैसी किसी राजनैतिक या सामाजिक प्रथा को दूर करने में होती है-या लोगों के दिलों में बैठी हुई मुर्दा रीति-रिवाजों को हटाने में जैसी मुश्किलें आती हैं। जहाँ किसी मत, धर्म या सम्प्रदाय के मानने वाले उसे अपने हृदय में चिपटाये होते हैं-वहाँ यदि कोई उसकी असारता साबित करने के लिए मज़बूत से मज़बूत प्रमाण उनके सामने रखता है, तो वह ढीला पड़ने के बदले उलटा मज़बूत होता है। क्योंकि यदि कोई मत, धर्म या सम्प्रदाय किन्हीं खास नियमों, तत्त्वों या उसूलों पर स्थापित किया गया हो तो उन नियमों, तत्त्वों या उसूलों को असार सिद्ध करने पर उसके भक्तों की आस्था उड़ जायगी-यानी यदि कोई मत किसी खास नियम पर रचा गया हो तो उस नियम को गलत साबित करने पर उस मत, का मन्दिर गिर पड़ेगा; पर यदि कोई मत लोगों की इच्छाओं पर-मनोवृत्तियों के झुकाव पर ही बना हो,-तो सबल और स्पष्ट प्रमाणों द्वारा जैसे जैसे वह निकम्मा