साबित होता जायगा,-वैसे ही वैसे उसके भक्त-उसके मानने वाले उसके हिमायती,-अपना इरादा पक्का करते जायँगे कि हमारा मत तो बदलना ही नहीं चाहिए। वे अपने इरादे की जड़ हृदय के उस गहरे और अँधेरे स्थान में गाड़ते है जहाँ दलीलों और प्रमाणों की पहुँच नहीं होती-वे तर्क की तीखी तलवार को परम्परा के विश्वास की ढाल पर लेते हैं। ग़नीम उनके इस मज़बूत किले के जो जो हिस्से गिरा देता है उन्हें वे सुधारने के लिए तैयार रहते हैं-वे उसकी मरम्मत के लिए नई नई कल्पनाएँ निकाला करते हैं-नये नये ढँग सोचा करते हैं। पुराने रीति-रिवाज-पुराने आचार-विचार-पुराने नियम-उपनियम की रक्षा लोग सदा करते रहते हैं, लोगों को सब प्रकार की पुरानी बातों की रक्षा करने के लिए अनेक घटनाएँ मिलती है और उन्हें दृढ़ बनाने वाले कारणों की संख्या इतनी अधिक है कि आध्यात्मिक और व्यावहारिक स्थिति में बड़ा भारी परिवर्त्तन हो जाने पर भी, और अनेक विषयों में बहुत कुछ लौट-फेर हो जाने पर भी स्त्रियों के विषय में यह मत नहीं बदला, यह जैसा तब था वैसा ही अब भी है, किन्तु इस में आश्चर्य्य की कोई बात नहीं है। जैसे जंगली आदमी अपनी रीति-रिवाजों का कुछ सिर पैर न जानने पर भी उसे दृढ़ता के साथ सैंकड़ों बरस निबाहे जाते हैं-वैसे ही समाज में असार होने पर भी जो बातें छाती के ज़ोर पर
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