पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/४२

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स्वभाव की जिन-जिन विचित्रताओं को हम सरल न कर सके उन सब को 'नैसर्गिक प्रवत्ति' का नाम देकर हमने छुट्टी पा ली। विचार-शक्ति के हारा खरेखोटे की जाँच का सच्चा रास्ता खुला रहने पर भी केवल प्रेरणा शक्ति के आधार पर बैठ रहना हानिकर है और अवनति का रास्ता है। करण की प्रेरणा को सर्वोत्तम मानना अत्यन्त हानिकारक है-यह समझना बड़ी भूल है,-और इस समय की अधिकांश प्रचलित भूलों का मूल भी यही है। जब तक मानसशास्त्र के यथार्थ ज्ञान का प्रचार पूर्ण रीति से न होगा तब तक इस प्रकार की ग़लतियाँ निर्मूल नहीं हो सकतीं, तब तक ऐसे प्रकार घटते ही रहेंगे। तब तक घटना, प्रकार, या विषय जिसके यथार्थ स्वरूप को हम नहीं समझ सकते उसे 'सृष्टि-क्रम' 'ईश्वरीलीला' 'कुदरती बात' आदि शब्दों से स्मरण करके अपने सिर से जवाबदारी का बोझ फेंकते रहेंगे। जब तक मानसशास्त्र के ज्ञान की उचित वृद्धि न होगी और ऐसी घटनाओं का यथार्थ स्वरूप समझ में न आवेगा, तब तक ऐसी बातें बन्द नहीं हो सकतीं।

अस्तु, मैं अपने ही विषय की बात कहूँगा, मेरे मार्ग में लोगों की प्रवृत्ति और रूढ़ि ही कठिनाइयाँ बनेंगी, इन्हें स्वीकार करके मैं आगे बढूंँगा। रूढ़ि और लोकाचार मेरे मत के विरुद्ध है। साथ ही मैं यह भी स्वीकार करता हूँ कि यह रूढ़ि या यह समझ 'सैंकड़ों बरस से अस्खलित रीति