आधीनता में ही रहें," इस ही प्रकार की व्यवस्था सर्वोत्तम है, और दोनों पक्ष के हितसाधन का इससे कोई योग्य मार्ग नहीं, तो जिस समय यह प्रथा सब से पहिले पसन्द की गई, उस समय यह सर्वोत्तम थी, यह अनुमान सिद्ध करने के लिए इसकी सार्वत्रिकता, इसका साधारणपन उदाहरण के काम
में आ सकता था, किन्तु इतना होने पर भी यह तो अवश्य ही होता कि जिन संयोगों और परिस्थितियों के आधार पर यह प्रणाली सर्वोत्कृष्ट मानी गई होती, वे संयोग समय की धारा के साथ नष्ट हो चुके होते या परिवर्तित हो गये होते-यदि परीक्षा के बाद भी स्त्रियों की पराधीनता स्थापित की गई होती तब भी समय के वेग में वे संयोग डूब गये होते,-किन्तु यह निश्चित है कि इस विषय में ऐसी कोई विधि नहीं की गई-बल्कि जो थोड़ा गहरा विचार करोगे तो मालूम होगा कि वास्तव में यह घटना ही औंधी रीति से घटी है। प्रथम तो स्त्रियो को पराधीनता के विषय में जो प्रबल लोकमत दिखाई देता है, वह केवल आनुमानिक
कारणों पर अवलम्बित है; क्योंकि समाज ने अन्य किसी भी प्रणाली का कभी अनुभव नहीं किया, इसलिए कोई नहीं कह सकता कि समाज में स्त्रियो की पराधीनता अनुभव का परिणाम है। दूसरे बारीक दृष्टि से देखेंगे तो मालूम होगा कि स्त्री पुरुषों के बीच में असमानता रखने की विषम व्यवस्था को लोगों ने पुख़्ता विचार करके—दीर्घ दृष्टि करके-मनुष्य-
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