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पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/४७

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इस प्रकार की प्रवृत्ति का परिणाम यह होता है कि अब तक जो मनुष्य निरुपाय होकर पराधीनता में पड़े थे, या जो जोर-ज़ुल्म से पराधीन रक्खे गये थे वे अब से नियमानुसार पराधीन समझ जाते हैं, अर्थात् उसके बाद वे क़ानूनन दास समझे जाते हैं। इतिहास में ग़ुलामी की जड़ इस ही प्रकार जमी है। प्रारम्भ में "लाठी उसकी भैंस" वाले नियम के अनुसार कमज़ोर आदमियों को बलवान् की ग़ुलामी में रहना पड़ता था, और बलवान् मनुष्य केवल अपनी शारीरिक सामर्थ्य पर निर्बलों को अपने आधीन रख सकता था। पर पीछे से ग़ुलामों के मालिक परस्पर अपनी रक्षा के लिए एक दूसरे से मिले-और सब ने अपनी सामर्थ्य मिला कर ऐसी व्यवस्था की कि एक दूसरे के ग़ुलाम और धन न हरण करें, इस ही प्रकार गुलामगीरी अपने अस्तित्त्व में आई। अत्यन्त प्राचीन काल में सम्पूर्ण स्त्री-वर्ग को और पुरुष-वर्ग के बड़े भारी भाग को इस ही प्रकार ग़ुलामी भोगनी पड़ती थी। यह नियम बहुत शताब्दियों तक रहा। इस काल में उच्च शिक्षा से शिक्षित होकर बहुत से मनुष्य सुज्ञानसम्मन्न हुए, किन्तु ऊपर कही हुई दोनों वर्गों की ग़ुलामी के विरुद्ध किसी को बोलने की हिम्मत न हुई, न किसीने इस प्रकार का ही प्रश्न उठाया कि समाज को उत्तम व्यवस्था के लिए इस प्रकार की गु़ुलामी आवश्यक भी है या नहीं। पर धीरे-धीरे इस प्रकार के विचार करने वाले पुरुष पैदा होने लगे; साथ ही मनुष्य-