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पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/४८

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समाज में और भी अनेक प्रकार के सुधार होते गये, इसका परिणाम यह हुआ कि योरुप के क्रिश्चियन राज्यों से पुरुषों की ग़ुलामी का सदा के लिए अन्त हो गया और स्त्रियों की ग़ुलामी का रूपान्तर होकर वह पराधीनता के मधुर वेष में वर्तमान है। किन्तु वर्तमान स्त्रियों की पराधीनता भी समाज का कल्याण सोच कर, अनुभव और परीक्षा के द्वारा स्थापित की हुई प्रणाली नहीं है-अर्थात् यह व्यवस्था भी समाज के द्वारा निश्चित होकर प्रचलित नहीं की गई। बल्कि स्त्रियों की वर्त्तमान पराधीनता उस ग़ुलामी का परिशिष्ट अंश है। यह ग़ुलामी जो आज ऐसा मधुर वेष और सौम्य रूप धारण किये दीखती है इसका कारण यह है कि जिन कारणों के प्रताप से मनुष्यों के आचार-विचार और व्यवहार में सुधार हुआ है, तथा मनुष्यों के पारस्परिक व्यवहार में न्याय और सहानुभूति का अधिक आदर किया गया है,-उन्हीं कारणों के व्यापार से मूल ग़ुलामी धीरे-धीरे सुधरती-सुधरती स्त्रियों की पराधीनता के सौम्य रूप को धारण कर सकी है। अपने

अत्यन्त नीच पाशविक प्रारम्भ के असर के कारण इतने ज़माने पर ज़माने गुज़रते हुए भी वह ग़ुलामी अभी अस्तित्त्व-हीन नहीं हुई। केवल इतनी ही नींव पर यह रूढ़ि अभी तक टिक रही है, अन्यथा स्त्रियों की पराधीनता के विषय में कोई दार्शनिक अनुकूल अनुमान नहीं निकल सकता। यदि कोई अनुकूल अनुमान निकालने की कोशिश करेगा तो वह इतना