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पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/५०

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को रूढ़ियों, रीति-रिवाजों और पुरानी बातों के लिए यह लगता है कि प्रारम्भ में ये रीतियाँ चाहे जिस प्रकार से प्रचलित होगई हों, किन्तु वे मनुष्य-स्वभाव के अनुरूप अवश्य हैं, और मनुष्य-समाज की सर्वधा हित और कल्याण की साधक हैं,-पिछले लोगों की इस प्रकार की पक्की समझ होनी चाहिए-अन्यथा आज-कल के उन्नत काल में वे कभी टिक ही नहीं सकती थीं। किन्तु इस प्रकार का अनुमान करते समय लोग यह नहीं सोचते कि, जो आचार-विचार, रीति-रिवाज सबल पक्ष को तमाम अधिकार सौंप देता है-वह साधारणतया सजीव और चिरस्थायी होता है, और लोग उसके चिमटे रहते हैं, इस ही प्रकार जिन मनुष्यों को सत्ता या अधिकार प्राप्त होते हैं, उनकी भली या बुरी मनोवृत्तियाँ उन्हें सदैव प्रेरणा करती रहती हैं कि वे अधिकार सदा उन्हीं के हाथ में रहें। इसके अलावा ऊपर लिखा हुआ अनुमान करने वालों को शायद यह भी नहीं मालूम है कि ऐसी ख़राब रूढ़ियाँ धीरे-धीरे अस्त होती जाती हैं; उन में भी जो सब से अधिक निर्बल होती हैं और जीवन के दैनिक व्यवहारों से जिनका सम्बन्ध स्वल्प होता है वे सब से पहले नष्ट होती है, और बाक़ी बलवान् रूढ़ियाँ भी धीरे-धीरे निर्जीव होती है। ऊपर का विचार करने वालों के दिलों में शायद यह बात भी नहीं आती कि, शारीरिक और आर्थिक सामर्थ्य-सम्पन्न होने के कारण समाज का जो दल क़ायदे क़ानून को अपने