अनुकूल बना लेता है, वह अनुकूलता तब तक नष्ट नहीं होती जबतक दूसरे पक्ष की सत्ता और शारीरिक सामर्थ्य पहले दल के समान नहीं हो लेती। बलवान् पक्ष से नियमों को अपने अनुकूल बनवा लेने योग्य शारीरिक सामर्थ्य आज तक कभी स्त्रियों को प्राप्त नहीं हुई, इसके अलावा और भी कई विशिष्ट कारणोंवश स्त्रियों की दशा आज तक जैसी की तैसी ही रही. इसलिए "लाठी उसकी भैंस" के तत्त्व पर
स्थापित की हुई स्त्रियों की पराधीनता, अन्य सब रूढ़ियों से विशेष बलवान् होने के कारण सब से पीछे नष्ट होगी। दूसरे सैंकड़ों सामाजिक सम्बन्ध और रीति-रिवाज लोगों ने न्याय के अनुसार बदल डाले हैं, किन्तु शक्ति के नियमों पर रचे हुए सामाजिक सम्बन्धों में ये सम्बन्ध जैसे का तैसा चला आ रहा है-यदि स्त्रियों की प्रकृत निर्बलता और ऐसे ही कुछ कारणों पर विचार करेंगे तो यह स्वाभाविक ही मालूम होगा। सब प्रकार के संयोगों पर विचार करते हुए मालूम होगा कि यह ऐसा ही होना चाहिए था। लोगों के नियम-उपनियम और क़ायदे-क़ानून समय समय पर सुधरते रहने के कारण उनका जैसा नया स्वरूप बन गया है, उन में केवल यही रूढ़ि अपवाद के समान बच रही है, वह भी इन कारणों से स्वाभाविक ही है। जब तक स्त्रियों की पराधीनता की उत्पत्ति के सच्चे कारणों को लोग न समझेंगे, और उस पर वाद-
विवाद होकर उनका सच्चा स्वरूप सब की दृष्टि के सामने न
पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/५१
दिखावट
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
( २० )