सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
( २४ )


में ही इस बातका ख़याल पैदा हुआ था कि यद्यपि ग़ुलाम लोकसत्ताक राज्यतन्त्र के भागीदार नहीं हैं फिर भी एक मगुष्य होने के कारण एक मनुष्य के समान हकदार हैं। यहूदी लोगों के क़ायदों में यह बात मिलाई गई थी कि ग़ुलामों के प्रति उनके मालिकों का अमुक-अमुक कर्त्तव्य है और उन्हें वह पूरा करना चाहिए। स्टोइक (The Stoics)*[] लोगों ने सबसे पहले इस तत्त्व को नीतिशास्त्र में मिलाया और प्रकट में लोगों को इसकी शिक्षा दी। ईसाई मत का पूर्ण प्राबल्य होने के अनन्तर इस सिद्धान्त को न मानने वाला पुरुष भाग्य से ही कहीं दिखाई देता था, और कैथोलिक सम्प्रदाय के प्रकट होने के बाद तो इसकी शिक्षा देने वाले और इसे पालन कराने वाले पुरुष पैदा न हुए हों यह असम्भव है। इस प्रकार की दशा होने पर भी क्रिश्चियन मतावलम्बियों को ग़ुलामी के विरुद्ध आन्दोलन करने में बड़ा भारी प्रयत्न करना पड़ा था। एक हजार वर्ष से भी अधिक समय तक ईसाई धर्म ग़ुलामी को उठाने के प्रयत्न में लगा रहा। फिर भी जितनी सफलता इसे होनी चाहिए थी उतनी न हुई। इसका कारण यह नहीं है कि क्रिश्चियन


  1. * प्राचीन ग्रीक लोगों में स्टोइक नामक एक तत्त्ववेत्ताओं का पन्थ था। उनका सिद्धान्त था कि आत्म-संयम के द्वारा मनोविकारों को मारना चाहिए और इन्द्रियजय प्राप्त करना चाहिए। इस विश्व का कर्ता परमात्मा है, उसका उद्देश शुभ है, इसकी योजना प्राणिमात्र के सुख के लिए है और मंगलमय है।