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पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/५४

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में होकर उच्च श्रेणी वाले सबल मनुष्य तोड़ देते थे और अपने वचन का निःशंक उल्लङ्घन कर डालते थे। यह क्रम मनुष्य-समाज में बहुत समय तक चलता रहा था, किन्तु निर्बलों के हृदयों में इससे निरन्तर चोटें अवश्य लगीं। प्राचीन काल का प्रजासत्तात्मक राज्यतन्त्र एक प्रकार का पारस्परिक समझौता था, या समान शक्ति वाले पुरुषों का एक गिरोह अपने लिए जो राज्यतन्त्र निर्माण करता था उसे प्रजासत्तात्मक राज्य के नाम से पुकारते थे। इस प्रकार प्रजासत्ताक राज्यतन्त्र "लाठी उसकी भैंस" वाले न्याय से कुछ भिन्न प्रकार के बन्धनों से जकड़ा हुआ मनुष्यों का पारस्परिक सम्बन्ध है-इतिहास में केवल शक्ति से कुछ भिन्न यह पहला ही उदाहरण है। यद्यपि "बलवान् के दो भाग" वाला न्याय राज्य के निवासी और ग़ुलामों में वैसे का वैसा ही बना था, फिर भी कुछ अंशों में प्रजासत्ताक राज्य और प्रजा तथा अन्य आस-पास के राज्यों से कुछ ऐसा ही सम्बन्ध था, इतना होने पर भी इस पेचीली घाटी में से शक्ति के नियम को स्थानभ्रष्ट करने वाली क्रिया पैदा हुई, उस समय से ही कहना चाहिए कि मनुष्य-स्वभाव की वास्तविक उन्नति प्रारम्भ हुई; क्योंकि पीछे से जिन आवश्यक अंगों की पूर्ति हुई उन मनोवृत्तियों का प्रादुर्भाव उस ही समय से होने लगा था; और एक बार उनके प्रादुर्भाव हो जाने पर फिर पोषण का ही काम बाकी रह गया था। सब से पहले स्वाधीन राज्यों