स्वाधीन व्यापार में अन्तर पड़ना सम्भव है, इसलिए उन मनुष्यों को अपने अधिकार में रखने की इच्छा सब से अधिक प्रबल होती है। ऊपर केवल सत्ता के ज़ोर पर जिन अधिकारों के प्राप्त करने के उदाहरण दिये गये हैं, उनकी रचना केवल अन्याय, अत्याचार और ज़ुल्म पर हुई थी, साथ ही उनका अस्तित्व टिकाये रखने वाले कोई सबल कारण भी न थे, फिर भी उन्हें नष्ट करने में इतनी कठिनाइयों का सामना
करना पड़ा और इतना समय लगा,-ऐसी दशा में यदि स्त्रियों की पराधीनता केवल अन्याय के ऊपर ही रची गई हो तब भी उसके नाश होने में अधिक से अधिक समय लगे और बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़े तो इसमें आश्चर्य्य ही क्या है?
फिर इस विषय में एक बात और भी विचारने योग्य है कि इस समय जिस वर्ग के हाथ में अधिकार है उसे स्वाधीन और अपने अनुकूल साधनों की कमी नहीं है, उनके हाथ में इतना बड़ा अनुकूल साधन है कि यदि वे चाहें तो यह विरोध अपने आधीन-वर्ग के सामने उपस्थित ही न होने दें। प्रत्येक स्त्री प्रत्येक पुरुष की आधीनता और देख-रेख में रहती है; और देख-रेख ही क्यों, स्त्री पुरुष के बिल्कुल क़ाबू में रहती है। स्त्री का जितना अधिक निकट सम्बन्ध पुरुष से होता है उतना किसी स्त्री के साथ भी नहीं होता, इसलिए स्त्री-समाज को पुरुष-समाज के विरुद्ध आन्दोलन