पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/६५

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करने का कोई साधन मिल ही नहीं सकता, और पुरुष को अपने क़ाबू में करने योग्य सामर्थ्य स्त्री में होती ही नहीं। बल्कि पराधीन होने के कारण स्त्री को ऐसी ग़रज़ बनी रहती है कि वह अपने स्वामी की प्रसन्नता प्राप्त करे और ऐसी नम्र होकर चले कि पति की आँखों में किसी प्रकार न खटके। राजकार्यों में हम बहुत बार देखते हैं कि लोग बड़े ऊँचे अधिकारियों को कभी घूस देकर और कभी किसी प्रकार का भय दिखा कर अपना काम निकलवाया करते हैं। यदि स्त्री-समाज की ओर देखोगे तो प्रत्येक स्त्री घूस और भय की चक्की में पिसती हुई दीखेगी। स्वामिवर्ग के ख़िलाफ़ और आन्दोलन की मुखिया बनने वाली और आन्दोलन में शामिल होनेवाली स्त्रियाँ अपने सब प्रकार के सुखों से हाथ धो सकती हैं। अधिकार और ज़ोर-जुल्म से जिन्हें पराधीनता प्राप्त हुई हो, और उस पराधीनता में लाचारी से विवश होकर जो अपना सिर भी न उठा सकते हों––ऐसी पराधीन दशा यदि किसी वर्ग की है तो वह केवल स्त्री-वर्ग की ही है। स्त्रियों के पराधीन रखने के अन्यान्य कारणों का उल्लेख मैंने अभीतक नहीं किया; फिर भी जिन मनुष्यों में विचार करने योग्य बुद्धि होगी उनके ध्यान में यह बात तो आ ही गई होगी कि वास्तव में स्त्रियों की पराधीनता अन्याय है और जिन अयोग्य रीतियों में यह अधिकार सम्पादन किया गया है––वे स्वाभाविक