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पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/६७

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स्टॉटल (अरस्तू) के समान बुद्धिमान् विचारज्ञ भी, जिसके द्वारा मनुष्यों के ज्ञान-भाण्डार की असीम वृद्धि हुई है, निःशङ्ग होकर अपने ऐसे ही विचार प्रकट करता था; और लोग स्त्रियों की पराधीनता के विषय में जो सुबूत देकर इसे स्थायी रखना चाहते हैं, उन्हीं सुबूतों के आधार पर अरिस्टाॅटल ने अपना सिद्धान्त स्थिर किया था। वे सबूत ऐसे होते हैं कि, प्रकृति से मनुष्य-जाति के दो भाग होते हैं। बहुत से मनुष्य प्रकृति से स्वाधीनता के योग्य होते हैं और बहुत से परतन्त्र प्रकृति के होते हैं। ग्रीक लोग प्रकृति से स्वाधीनता के योग्य होने वाले मनुष्यों में से हैं और थ्रेशिया (Thracians) तथा एशिया-खण्ड के जङ्गली आदमी परतन्त्र प्रकृति के हैं-और इसलिए थ्रेशिया और एशिया-खण्ड वाले मनुष्य ग्रीक लोगों के ग़ुलाम होने के लिये बने हैं। फिर हमें अरिस्टाॅटल तक जाने की ज़रूरत ही क्या है? दक्षिण युनाइटैड स्टेट्स में ग़ुलामों के मालिक भी तो इन्हीं दलीलों से गुलामी का प्रतिपादन करते थे; और ये बातें हमारे अनुभव में बहुत ताजी हैं कि लोग अपनी स्वार्थ-बुद्धि की योग्यता सिद्ध करने में और अपनी मनोवृत्तियों के न्यायपुर: सर बताने वाली दलीलो में कितनी बहुतायत से चिमटे रहते हैं, इस ही प्रकार उस समय के लोग ग़ुलामी को न्यायसङ्गत बताने के पक्ष में थे। क्या उन्हीं लोगों ने इस बात को सिद्ध करने में ज़मीन-आसमान के कुलावे नही मिला दिये कि