पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/६६

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रीति से ही अधिक समय तक टिकने वाले हैं। हम जब सोचते हैं कि ऊपर कहे हुए बहुत से निन्द्य प्रकार बहुत से सुधरे हुए देशों में अब भी प्रचलित हैं, और बहुत से देशों से अभी-अभी उठे हैं-तब जिसका मूल सब से अधिक गहरा जमा है, वह स्त्रियों की पराधीनता यदि किसी देश में कुछ शिथिल हो गई तो आश्चर्य्य ही है। पराधीनता को स्थायी रखने वालों की संख्या सबसे अधिक ज़ोरदार है और तमाम प्रतिष्ठित पुरुष इस ही पक्ष में हैं।

९-कदाचित् लोग मेरे दृष्टान्तों पर आक्षेप करेंगे यह-तर्क उठावेंगे कि अयोग्य रीति में अधिकार सम्पादन करने के जो उदाहरण मैंने ऊपर दिये हैं, वे पुरुषों के द्वारा स्त्रियों की पराधीनता के विषय में घटने योग्य नहीं हैं। क्योंकि ऊपर वाले सब उदाहरण ज़ोर, जुल्म और अत्याचार के परिणाम हैं, और स्त्रियों पर पुरुषों का अधिकार तो स्वाभाविक है। पर मैं उनसे पूछता हूँ कि जिनके हाथ में अधिकार होता है, क्या उन्हें कभी ऐसा भी मालूम हुआ करता है कि मेरा बर्ताव स्वाभाविक नहीं है? फिर एक समय ऐसा भी था जब लोगों ने मनुष्यों के केवल दो ही विभाग कर रक्खे थे-एक सबसे छोटा विभाग मालिकों का था और दूसरा सब से बड़ा विभाग ग़ुलामों का था-और इस पर मज़े की बात यह थी कि मनुष्य-जाति का यह वर्गीकरण विचार-सम्पन्न पुरुषों को स्वाभाविक ही मालूम होता था। अरि-