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पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/६९

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अपने अधिकार में रखने की हौंस होती है, उन्हें यदि दूसरे की सत्ता के समर्थन से अन्य कोई योग्य कारण या दलील नहीं मिलती, तब उन्हें "लाठी उसकी भैंस" वाला नियम भी स्वाभाविक ही मालूम होता है। वे इस बात को साबित करते हैं कि जो ज़ियादा ताक़त वाला है वह अधिक अधिकार भोगे होगा। लड़ाई में जो पक्ष जीतता है वह भी यही कहता है कि हारने वालों को जीतने वालों के आधीन ग़ुलाम बन कर रहना चाहिए, यही न्याय है, यही प्रकति की आज्ञा है। इस ही बात को यदि सीधे शब्दों में कहें तो कह सकते हैं कि कमज़ोर आदमियों को बलवानों के अधिकार में रहना चाहिये।

इतिहास में जो समय मध्ययुग ( Middle ages) के नाम से प्रसिद्ध है, उस समय के मनुष्य स्वभाव का जिन्हें थोड़ा-बहुत अनुभव होगा, उन्हें मालूम होगा कि उमराव लोग अपने से नीची श्रेणी वाले मनुष्यों को अपने ताबे में रखना कितना स्वाभाविक समझते थे, और नीची श्रेणीवाले लोग उनकी बराबरी करने लगें, या उनसे अधिक अधिकार भोगने की इच्छा करें, तो इस प्रकार की कल्पना ही उन्हें बड़ी विलक्षण और सृष्टिक्रम-विरुद्ध जान पड़ती थी। और पराधीनता भोगने वाले निचले वर्ग को भी यह बात विलक्षण मालूम होती थी। बहुत समय के बाद निम्न श्रेणी वालों ने झगड़-झगड़ा कर कुछ स्वाधीनता प्राप्त की थी, किन्तु उस