मनुष्य के घर पैदा होने वाला बालक आजीवन सामान्य श्रेणी में ही समझा जाता था।जिस बालका का जन्म पेट्रीशिअन वर्ग में होता था वह पेट्रीशिअन और जिसका प्लीबीअन के घर जन्म होता था वह प्लीबीअन ही रहता था। एक दास या ग़ुलाम के पेट से पैदा हुआ मनुष्य अपनी बुद्धि और प्रयास से ऊँचे वर्ग में नहीं जा सकता था, उसे स्वाधीनता नहीं मिल सकती थी; अपने मालिक की मरजी के अलावा स्वाधीनता पाने के लिए उसके पास कोई उपाय नहीं होता था। इतिहास जिस समय को मध्ययुग कहता है उसके अन्त तक योरूप के सभी देशों में वह उमराव या श्रेष्ठ पद नहीं प्राप्त कर सकता था जिसका जन्म उन वंशों में नहीं हुआ है; और मध्ययुग के अन्त में भी राजाओं की सत्ता विशेष होने के कारण साधारण श्रेणी वाले उमराव-पद पर पहुँच सकते थे। उमराव-वर्ग में भी यह ज़बर्दस्त रिवाज थी कि बड़ों की पैदा की हुई तमाम मिलकियत का वारिस सिर्फ बड़ा लड़का ही हो सकता था और बाप अपने बड़े बेटे को उसके हक़ से नहीं हटा सकता था। अर्थात् अपने पूर्वजों की पैदा की हुई सम्पत्ति को अपने मनचाहे ढंग से तकसीम नहीं कर सकता था। इस नियम के निश्चित होने में भी एक बड़ा लम्बा अर्सा लगा था। हुनर और व्यापार-धन्धा भी वही कर सकते थे जो उस व्यापारिक या कार्यकारी मण्डल (Guild) में पैदा होते थे, और जो मनुष्य उस में पैदा नहीं होते थे और मण्डल जिन्हें
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