पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/८०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
( ५१ )


तक मनुष्य अपनी अवस्था न बदल सके। अपनी बुद्धि के अनुसार आज जो मनुष्य जिस काम को करना चाहता है उसे आज़ादी के साथ कर सकता है; आज आदमी इस बात के लिए स्वाधीन है कि उसे जैसे अनुकूल साधन प्राप्त हो वैसे ही वह उन्हें काम में लाकर अपनी हालत सुधार ले। पुराने समय में समाज की व्यवस्था कुछ और ही नियमों पर चल रही थी। जिस मनुष्य का जन्म जिस कुल और जिस जाति में होता था वह मरने तक उस ही कुल और उस ही जाति में रक्खा जाता था; क़ायदे और रूढ़ियाँ उसे ज़रा भी इधर-उधर न होने देती थीं, और विशेष करके तो उसे अपनी स्थिति सुधारने के साधन ही दुर्लभ थे। जैसे मनुष्यों में कुछ आदमी काले रंग के पैदा होते हैं और कुछ गोरे रंग के-वैसे ही उस ज़माने में बहुत से आदमी ग़ुलाम बन कर जन्म लेते थे; यानी जिस बालक का जन्म ग़ुलाम के पेट से होता था वह आजन्म ग़ुलाम ही होता था और स्वाधीन नागरिक के घर पैदा होने वाला बालक स्वाधीन समझा जाता था*[१]। जिस बालक का जन्म उमराव के घर होता था वह जन्म-भर उमराव गिना जाता था और सामान्य


  1. * प्राचीन काल में हमारे देश में "आर्य" और "अनार्य" का भेद जन्म से ही माना जाता था। इस ही प्रकार ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण भी जन्मभेद की नींव पर ही स्थापित हैं। विश्वामित्र जैसे क्षत्रिय से ब्राह्मण बने ऐसे उदाहरण दो ही चार मिलते हैं-पर यह भी जन्म-भेद की दृढता का प्रमाण है।