तो वह अपने आप काम सीखेगा, पर इसके लिए कानून बनाने की आवश्यकता ही क्या है। पुराने ज़माने में लोगों का ख़याल था कि व्यक्ति की पसन्द पर बहुत ही कम काम छोड़ने चाहिएँ। जो सत्ता के स्वामी होते थे वे सोचते थे कि हम लोगों से ज़ियादा अक्लमन्द-विचक्षण हैं, इसलिए किस व्यक्ति का हित किस काम में है, उसे जिस तरीक़े से करने पर उसे लाभ होना सम्भव है, उसके लिए इन सब बातों का निर्णय हमें पहले से ही कर डालना चाहिए, और यदि उसे स्वतन्त्रता-पूर्व्वक उसकी मन्शा के मुताबिक़ करने दिया जायगा तो उससे ज़रूर भूलें होंगी। इस ज़माने में यह समझ बहुत कुछ उड़ गई है। हज़ारों बरसों के अनुभव के बाद लोगों का यह पक्का विश्वास हो गया है कि जिस काम में जिस व्यक्ति का प्रत्यक्ष लाभ हो, उस काम को उस ही की मरज़ी पर छोड़ देना चाहिए; ऐसा करने पर ही वह काम अच्छे से अच्छे ढँग पर हो सकता है; और यदि दूसरों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए सरकार बीच में हाथ डालेगी तो उस काम में अवश्य हानि ही होगी। इस निश्चय पर पहुँचने में मनुष्य-जाति को बड़ा समय लगा है, और इस पद्धति के विरुद्ध जितने प्रकार की पद्धतियाँ कल्पना में लाई जा सकती हैं, उन सब का अनुभव प्राप्त करके, जब सब के परिणाम में हानि हुई, तभी लोगों ने इस निश्चय के अनुसार काम करना निश्चित किया। इस समय जो देश उन्नत और
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