पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/८४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
( ५५ )


ज्ञानसम्पन्न कहे जाते हैं उन सब में, हुनर और उद्योग-धन्धे के विषय में ऊपर लिखा सिद्धान्त ही काम में लाया जाता है, और इसलिए इस समय जो मनुष्य जिस धन्धे को करना चाहता है उसमें किसी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं आता। कोई मनुष्य यह सिद्ध करना नहीं चाहता कि एक काम के जितने न्यारे-न्यारे तरीक़े हैं वे सभी अच्छे हैं, या सभी आदमी सब कामों को ख़ूबी के साथ कर सकते हैं। बल्कि लोगों की यह धारणा बन चुकी है कि हर एक धन्धे की पसन्द आदमी की मन्शा पर छोड़ देने से वह उसीतरीके को पसन्द करेगा जो सब से अच्छा होगा, और जो आदमी पूरे तौर पर जिस कामके लायक होता है-उस ही के हाथ में वह काम जाता है। उदाहरण के तौर पर जो आदमी मज़बूत शरीर वाला होता उसही के हाथ लुहार का धन्धा जाता है, इसलिए इस तरह के कानून की कोई ज़रूरत नहीं है कि कमज़ोर आदमी लुहारी का काम नहीं कर सकते। काम पसन्द करने की आज़ादी और अनियन्त्रित स्पर्धा इन दो कारणों से लुहारी के काम को वे ही पसन्द करेंगे जो मोटे-ताज़े और ताक़त वाले होंगे; और जिन आदमियों में ज़ियादा ताक़त न होगी वे लुहारी का काम न करके जिस काम के लायक़ होंगे उसे तलाश कर लेंगे क्योंकि ऐसा करने पर ही उन्हें ज़ियादा से ज़ियादा फ़ायदा हो सकेगा। इस ही सिद्धान्त के अनुसार लोगों की धारणा हो गई है कि, किसी ऐसे-वैसे कारण पर ही