कि वह अमुक प्रकार की सामाजिक स्थिति के लिए ही बनी है, या कुछ इज्ज़त-आबरू के काम करने के दरवाजे़ उसके लिए बन्द कर देना-यह काम भी उतने ही अन्याय और अत्याचार से भरा समझना चाहिए। पुरुषों की ओर से जो इस प्रकार का दावा किया जाता है कि अमुक-अमुक अधिकारों में स्त्रियों की अपेक्षा पुरुष ही विशेष योग्य है, यदि हम ज़रा देर के लिए इसे मान लेवें, यानी यह स्वीकार कर
लेवें कि पुरुष स्त्रियों में विशेष योग्यता वाले होते हैं। फिर भी पार्लिमेण्ट के सभासद बनने के लिए जो नियम निश्चित है कि उसकी इतनी योग्यता होनी चाहिए, उसे अमुक-अमुक नियम पूरे करने चाहिएँ,-उन निश्चित नियमों को कानून का स्वरूप देने के विरुद्ध जो दलीलें पेश की जाती हैं-वे ही दलीलें इस विषय पर भी समान लागू है। मानलो कि, कोई मनुष्य पार्लिमेण्ट के सभासद होने के सर्वथा योग्य है, पर
सभा ने योग्यता के विषय में जो-जो नियम निश्चित कर दिये हैं, उनमें से एक दो को पूरा न कर सकने के कारण वह पार्लिमेण्ट का सभासद नहीं हो सकता। यदि प्रत्येक बारह में भी इस प्रकार का एक उदाहरण बन जाता हो, तो उससे सम्पूर्ण देश का नुकसान है, और ऐसे हज़ारों अयोग्य यदि न चुने जायँ तो विशेष लाभ नहीं। क्योंकि यदि चुनने वाले मण्डल का संगठन ऐसा होगया हो कि वे अपनी रुचि के
अनुसार अयोग्य मनुष्यों को ही चुनें तो वास्तव में अयोग्य
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