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पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/८९

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हुआ हो वही राजा हो सकता है, राजकुटुम्ब से भिन्न कोई मनुष्य सिंहासन का उत्तराधिकारी नहीं होता और राजघराने का भी वही मनुष्य राजा होता है जो वारिस समझा जाता है। केवल एक राजपद को छोड़ कर बाक़ी सम्पूर्ण अधिकार और हर एक सामाजिक लाभ उठाने की स्वाधीनता प्रत्येक मनुष्य की है। निस्सन्देह बहुत से अधिकार और लाभ ऐसे हैं जो बिना द्रव्य के प्राप्त नहीं हो सकते, किन्तु द्रव्य-प्राप्ति के सम्पूर्ण द्वार प्रत्येक व्यक्ति के लिए खुले है; तथा ऐसे बहुत से उदाहरण हमारे सामने मौजूद हैं कि साधारण कुल में जन्म लेकर लोग धनी बने हैं। यह बात तो है ही कि भाग्य सब के अनुकूल नहीं होता, और इसलिए बहुत से मनुष्यों को उच्च श्रेणी में जाते हुए अनिवार्य कठिनाइयाँ आती हैं। किन्तु यह तो निस्सन्देह है कि नियम की कोई ऐसी बाधा नहीं है जिससे किसी-किसी वर्ग वाले किसी अधिकार को न पा सकें, या किन्हीं विशेष कामों के लिए कोई वर्ग अयोग्य समझा जाय; अर्थात् नियम या लोकमत से स्वाभाविक कठिनाइयों में कृत्रिम कठिनाइयांँ नहीं मिलाई जातीं।

ऊपर कहा गया है कि राजपद इस नियम का एक अपवाद है, और इसे प्रत्येक मनुष्य बात-चीत करते समय अपवाद ही कहता है। इस बात को प्रत्येक मनुष्य जानता है कि राजपद का जो कुछ खटराग पूरा करने के लिए इस जमाने में रीति-रिवाज और व्यवहार प्रचलित हैं