पृष्ठ:स्त्रियों की पराधीनता.djvu/९०

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और जैसी नाम मात्र की सर्वमान्यता उसे दी गई है। यह कुछ विशेष बातों के लिए समझ-बूझ कर पसन्द करना पड़ा है। इन विशेष बातों के महत्त्व के विषय में अर्थात व्यवस्था की आवश्यकता के सम्बन्ध में भित्र-भिन्न व्यक्तियों के तथा भिन्न-भित्र प्रजाओं के मन्तव्यों में भेद है, यह सत्य है, किन्तु ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जो इन विशेष कारणों के अस्तित्त्व को स्वीकार न करता हो। यद्यपि कुछ विशेष महत्त्व के कारणों से राजपद के समान सर्वोच्च सामाजिक अधिकार प्रजा मात्र की स्पर्धा के लिए खुला नहीं रक्खा गया, केवल राजपरिवार में पैदा हुए मनुष्यों के लिए ही वह रक्षित रक्खा गया है, और इस रक्षितपन के कारण यह सामान्य नियम का अपवाद जैसा मालूम होता है, फिर भी इस समय के सम्पूर्ण स्वाधीन राज्यों ने अनेक युक्ति-प्रयुक्तियों के द्वारा इस अधिकार को केवल नाममात्र का ही रख दिया है, और वास्तविक रीति से देखते हुए यह सब उसी मूल नियम को पोषण के लिए रक्खा है; क्योंकि राजा के पीछे बड़ी-बड़ी शर्तें लगी हैं, अपने राज्य पर हुकूमत करते हुए राजा पर इतने बन्धन पड़ जाते हैं कि उसके हाथ में राज्याधिकार तो केवल नाममात्र के ही रह जाते हैं, केवल नाम मात्र का राज्य उसके हाथ में रहता है। राज्य की प्रधान सत्ता मन्त्री (सेक्रेटरी) के हाथ में होती है, और इस मन्त्री के पद तक पहुँचने के लिए सर्वसाधारण को पूरी स्वाधीनता है। इस बात से यह सिद्ध होता है कि इस