पृष्ठ:स्वदेश.pdf/१६

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नया और पुराना।

चाहता है उसकी कोई प्रतीति करानेवाली भाषा नहीं है, प्रत्यक्ष करने-वाला कोई प्रमाण नहीं है और समझमें आने योग्य कोई परिणाम या नतीजा नहीं है।

यह देखकर वे कहने लगे कि हे वृद्ध, हे चिन्तातुर, हे उदासीन, तुम उठो, पोलिटिकल ऐजिटेशन अर्थात् राजनैतिक आन्दोलन करो; अथवा दिनकी नींद में पड़े पड़े अपने पुराने, जवानी के, प्रताप की घोषणा करते हुए शिथिल––पुरानी हड्डियों के बल पर बलफो––खम ठोको। देखो, उससे तुम्हारी लज्जा निवृत्त होती है कि नहीं।

किन्तु मुझे बाहरी लोगों के इस उपदेश पर श्रद्धा या प्रवृत्ति नहीं होती। केवल अखबारों की पाल चढ़ाकर दुस्तर संसारसागर में यात्रा आरम्भ करने का मुझे साहस नहीं होता। यह सच है कि जब धीमी और अनुकूल हवा चलती है तब यह खबर के कागजों की पाल गर्व से फूल उठती है, किन्तु जब कभी समुद्र में तूफान आवेगा तब यह दुर्बल दम्भ सैकड़ों जगह से फटकर बेकाम हो जायगा।

यदि पास ही कहीं उन्नति नामक बन्दरगाह होता और वहाँ पर किसी तरह पहुँचते ही 'दही-पेड़ा दीयतां और भुज्यतां' की बात होती तो चाहे अवसर सोचकर, आकाशका रंगढंग देखकर, अत्यन्त चतुरता और सावधानी के साथ एकबार पार होने की चेष्टा की भी जाती। किन्तु जब यह जानते हैं कि इस उन्नति के मार्ग में यात्राका अन्त नहीं है; कहीं पर नाव बाँध नींद लेने का स्थान नहीं है; ऊपर केवल ध्रुवतारा चमक रहा है और सामने केवल अन्तहीन समुद्र की जलराशि है; हवा प्रायः प्रतिकूल ही चला करती है और लहरें सदा भारी वेग से उठा करती हैं, तब बढे बैठे केवल फूल्सकेप कागज की नाव तैयार करने को जी नहीं चाहता।