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स्वदेश–

खेतों में एक ही चीज नहीं होती, यह समझकर जो लोग स्थान के अनुसार उपयुक्त खेत से उपयुक्त अन्नकी आशा करते हैं वे ही समझदार समझे जाते हैं।

ईसाकी जीवनी में हिसाब का बहीखाता तलब करने से उस विषय में उनके प्रति अश्रद्धा हो सकती है, किन्तु उनके चरित्र के अन्य अंशों पर दृष्टि डालने से हिसाब का बहीखाता भूल जाता है। इसी तरह राष्ट्रीय मामलों में भारतवर्ष को औरों से हीन समझ लेने पर भी अन्य ओर दृष्टि डालने से वह हीनता जरा भी नहीं खटकती। उसी ओर से––अर्थात् अपने घर की ओर से भारतवर्ष को न देखकर, हम लोग लड़कपन से ही उसे छोटा समझते हैं और आप भी छोटे बनते हैं। अँगरेज का बच्चा जानता है कि उसके बापदादाओं ने अनेक युद्धों में जय-लक्ष्मी प्राप्त की है; अनेक देशों पर कब्जा करके वहाँ अपने देश का बनिज-व्यापार फैलाया है, इसीसे वह भी अपने को रणगौरव, धनगौरव और राज्यगौरव के योग्य बनाना चाहता है। और हम क्या जानते हैं? हम जानते हैं कि हमारे बाप-दादे बिलकुल ही असभ्य, कायर और मूर्ख थे; उन्होंने न कभी किसी युद्ध में विजय-वैजयन्ती उड़ाई, न किसी देश पर अधिकार जमाया और न अपने देशकी उन्नति ही की। हमको यही जताने के लिए शायद यह भारत का इतिहास है। हमारे बापदादाओं ने क्या किया, सो तो हम कुछ भी नहीं जानते। फिर अब हम क्या करें? बस, औरों की नकल!

हम इसके लिए दोष किसे दें? लड़कपन से हम जिस ढँग की शिक्षा पाते हैं उससे, शिक्षा के पहले ही दिन से, देश के साथ जो हमारा हार्दिक सम्बन्ध है वह विच्छिन होता चला जाता है। परिणाम यह होता है कि धीरे धीरे हम देश के विरोधी और विद्रोही बनते चले जाते हैं।