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स्वाधीनता।

निकालने में फिर बहुतसा मतभेद भी न हो। व्यक्ति-विशेष की उन्नति होना—हर आदमी की तरक्की होना सुख का मूल कारण है। जिसे हम सुधार, सभ्यता, शिक्षा, संस्कार और ज्ञानवृद्धि कहते हैं उस सब की बराबरी ही की वह उन्नति नहीं है; किन्तु उसका वह प्रधान अङ्ग और मूल हेतु भी है। यदि यह बात लोगों के ध्यान में आजाय तो वे उसकी तरफ कभी बेपरवाही न करें और उसके महत्त्व को वे कभी कम न समझें। हर आदमी की स्वतन्त्रता और समाज के बन्धन की हद बाधने में भी फिर कोई कठिनाई न आवे। परन्तु दुःख इस बात का है कि साधारण आदमियों के ध्यान में यह नहीं आता कि हर आदमी की स्वच्छन्दता या स्वेच्छा की भी कुछ कीमत है; या वह भी कोई ऐसी चीज है जिसका आदर होना चाहिए। जो बातें या जो रीतियां आजकल प्रचलित हैं वे बहुत आदमियों की चलाई हुई हैं। बहुत आदमियों ने मिलकर उन्हें जारी किया है। इससे उन्हें वही पसन्द हैं; वही उन्हें हितकर जान पड़ती हैं। क्योंकि उनके जन्मदाता वही हैं। इस कारण यह बात उनकी समझ ही में नहीं आती कि वे रीति-रवाज हर आदमी के लिए क्यों हितकर नहीं? क्यों सब लोग उनसे लाभ नहीं उठा सकते? जो लोग नीति और समाज का सुधार करने का बीड़ा उठाते हैं उनमें भी अधिक संख्या ऐसे ही लोगों की होती है जिनको व्यक्ति-स्वातंत्र्य, अर्थात् हर आदमी की स्वतन्त्रता, अच्छी नहीं लगती। वे समझते हैं कि यदि हर आदमी को मनमाना काम करने की स्वतन्त्रता दी जायगी तो सारे समाज के सुधार में विघ्न पड़ेगा—अटकाव होगा—देर लगेगी। वे डरते हैं कि यदि हर आदमी को मनमानी स्वतन्त्रता मिल जायगी तो जिन बातों को वे अपनी बुद्धि के अनुसार मनुष्य-मात्र के लिए सब से अच्छी समझते हैं उनके प्रचार में जरूर प्रतिबन्ध आ जायगा। जर्मनी में हम्बोल्ट नाम का एक बहुत बड़ा पंडित और बहुत बड़ा राजनीति-कुशल विद्वान् हो गया है। उसने बहुत सी पुस्तकें लिखी है। उनमें से एक पुस्तक में, एक जगह, वह लिखता है:—"अनिश्चित, अनित्य और नश्यमान वासनाओं की प्रेरणा की परवा न करके निश्चित, अविनाशी और पूरी विवेक-शक्ति की सहायतासे विचार करने पर जान पड़ता है कि संसारमें मनुष्य का सबसे बड़ा उद्देश यह है कि—बिना परस्पर विरोध के अपनी सब शक्तियों का पूरा पूरा विकास, अर्थात्