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तीसरा अध्याय।

विस्तार या फैलाव, हो। इसलिए हर आदमी को जिस बात की तरफ हमेशा ध्यान रखना चाहिए, और विशेष करके समाज का सुधार करनेवालों को जिस बात को अधिक महत्व देना चाहिए, वह अपनी अपनी विवेक-शक्ति का बन्धनहीन विकास है। अर्थात् हर आदमी को यह देखते रहना चाहिए कि उसकी विचारशक्ति में किसी तरह की रुकावट या प्रतिबन्धकता तो नहीं आती। विवेक-शक्ति की बढ़ती के लिए दो बातें दरकार हैं। एक स्वतन्त्रता, दूसरी कई तरह की अवस्थायें अर्थात् स्थिति-वैचित्र्य। इन्हीं दोनों के योग अर्थात् मेल से व्यक्ति-बल और स्थिति-वैचित्र्य पैदा होते हैं। अर्थात् इन्हींके होने से हर आदमी में एक विशेष तरह की शक्ति उत्पन्न होती है और हर आदमी मनमाना काम करने में, मनमाना बर्ताव करने में, मनमानी चाल चलने में समर्थ होता है। इसीसे नवीनता आती है—इसीसे नयापन पैदा होता है"। हम्बोल्ट के अनुसार व्यवहार करना तो दूर की बात है उसके मत का मतलब, जर्मनी को छोड़कर, और देशवालों की समझ तक में नहीं आया।

हम्बोल्ट के इस सिद्धान्त को इस देश में, आज तक किसीने नहीं सुना था। इससे अब यह सुनकर कि हर आदमी की स्वतंत्रता को वह इतना कीमती समझता है, लोगों को जरूर आश्चर्य होगा। तथापि मुझे भरोसा हैं कि वे इस बात पर वाद-विवाद न करेंगे कि व्यक्ति-स्वातन्त्र्य होना चाहिए या नहीं—हर आदमी को आजादी मिलनी चाहिए या नहीं। विवाद इस बात पर वे करेंगे कि स्वतन्त्रता कितनी मिलनी चाहिए। क्योंकि लोगों का यह हरगिज खयाल नहीं कि दूसरों की नकल करना ही बर्ताव, व्यवहार या चालचलन का सब से अच्छा तरीका है। अर्थात् भले बुरे का विचार न करके दूसरों के बर्ताव को देखकर खुद भी वैसा ही करने लगना कभी लोग अच्छा नहीं समझेंगे। यह कोई न कहेगा कि आदमी को अपनी समझ या अपने स्वभाव के अनुसार बर्ताव न करना चाहिए; अथवा अपनी विवेक-शक्ति को काम में न लाना चाहिए; अथवा जिसे जो बात अपने फायदे की जान पड़े उसे न करना चाहिए यह समझना बिलकुल ही असङ्गत होगा कि जिस समय हम पैदा हुए उस समय के पहले सन लोग निरे मूर्ख थे—उनको जरा भी ज्ञान न था और इस बात का तजरूबा लोगों को बिलकुल न था कि किसी एक