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तीसरा अध्याय




नकल कराने में न तो प्रबल इच्छा ही की बड़ी जरूरत रहती है और न प्रबल विचार-शाक्ति ही की । अभी से प्रबल उत्साह के आंदसी बहुत कम देखे जाते हैं । विशेष करके परम्परा से सुनी हुई बातों में ही प्रबल उत्साहचालों की अधिकता है । अर्थात् अधिक उत्साही स्वभाव के आदमी नामशेप होते जा रहे हैं। व्यापार की बातों को छोड़ कर और बातों में उत्साह-शक्ति को सर्च करने के लिए; इस देश में, बहुत कम जगह रह गई है । और, जो कुछ रह गई है वह भी कम हो रही है। व्यापार में जो शक्ति खर्च होती है वह अब तक अधिक परिमाण में खर्च होती है। उसमें खर्च होने से देश की जो थोड़ी सी शक्ति बच जाती है वह एक आध पागलपन के काम में खर्च होती है। ऐसे पांगलपन या सनक के काम कभी कभी उपयोगी जी होते हैं और कभी कभी लोगों के हित के लिए भी किये जाते हैं। पर ऐले काम बहुत करके किसी एक ही बात से सम्बन्ध रखते हैं और दह बात भी ऐसी ही वैसी होती है; महत्त्वं की नहीं होती। इंगलैण्ड का वर्तमान महत्त्व सञ्चित है; संगृहीत है, समुदित है। उसका ऐश्वर्य इकठा किया हुआ है-बहुत आदमियों के योग से वह मिला है । इंगलैण्ड के हर आदमी की शक्ति के हिसाब से यदि उसका ऐश्वर्य तौला जाय तो वह बहुत ही थोड़ा निकले । हम लोग जो एक आध महत्त्व के काम करने लायक देख पड़ते हैं उसका कारण मिलकर काम करने की हमारी आदत है । अर्थात् लिर्फ एकता के बल से यदि हम लोग कोई बड़ा काम कर सकते हैं तो कर सकते हैं । नीति और धर्म से संम्बन्ध रखनेवाले जो लोग इस देश में लोक-वत्सल कहलाते हैं वे इसीसे सन्तुष्ट हैं। वे इतने ही को काफी समः पते हैं । परन्तु जिन्होंने गलैण्ड को उसकी वर्तमान अवस्था को पहुंचायाअर्थात् उसकी, आज तक, जिन्होंने इतनी उन्नति की-वे ऐसे आदमी न थे। इस तरह के मादमी न थे। इस तरह के आदमियों से उसकी उन्नति नहीं हुई । और उसके हास को रोकने-उसे क्षीण होने से बचाने के लिा भी और ही तरह के भादमियों की जरूरत होगी। वर्तमान रीति और नीति के आदमियों से यह वात होने की नहीं।

जिस तरफ आप आंख उचाइयेगा उस तरफ आपको रूढ़ि की प्रबलताति भांति की सस्ती-ही मनुष्यमान की उन्नति का वाधक देख पड़ेगी। जोदातें प्रचलित हैं-जो बातें रूढ़ हो गई है उनकी अपेक्षा अधिक