थी उस समय प्यूरिटन सम्प्रदाय वालों ने धर्म्मान्ध आदमियों की तरह नैतिक बातों में बहुत ही अधिक अनुदारता दिखाई। पर जब क्रामवेल के बाद दूसरा चार्ल्स इंग्लैंण्ड का राजा हुआ तब लोगों ने बहुत ही बुरा, अर्थात् अशिष्टता का, बर्ताव करना शुरू किया। दुराचारी और विषयी आदमियों के उदाहरण से समाज की रक्षा करना बहुत जरूरी बात है। जो लोग यह कहते हैं वे बहुत सच कहते हैं। बुरे उदाहरण का फल हमेशा बुरा होता है, और दूसरोंको हानि पहुंचानेवालों को यदि सजा न मिले तो उनके उदाहरण का फल और भी बुरा होता है। पर, इस समय जिस तरह के बर्ताव की बात मैं कह रहा हूं उसके विषय में यह कल्पना करली गई है कि उससे दूसरों की हानि न होकर खुद उस बर्ताव के करनेवाले ही की विशेष हानि होती है। अतएव इस तरह के उदाहरण से दूसरों को हानि की अपेक्षा लाभ होने ही की अधिक सम्भावना रहती है। यह बात सहज ही ध्यान में आने लायक है। मैं नहीं जानता कि क्यों लोग इस बात को बिलकुल उलटा समझते हैं। क्योंकि जब किसी आदमी के बुरे बर्ताव का उदाहरण औरों को देखने को मिलता है तब उस बर्ताव के दुःखकारक और नीच परिणाम भी उन्हें देखने को मिलते हैं। और, इस तरह के बर्ताव की यदि समाज ने उचित निन्दा की तो इसके बुरे परिणाम जरूर ही लोगों की नजर में आते हैं। इसलिए, मेरी समझ में यह बात नहीं आती कि जिन बर्तावों को लोग खुद बर्ताव करनेवाले के लिए हानिकर समझते हैं, उन्हें वे दूसरों के लिए किस तरह अपायकारक बतलाते हैं। यदि उन्हें बर्ताव करनेवाले की हानि पर विश्वास है तो उन्हें दूसरों की हानि की सम्भावना अपने दिल से दूर कर देनी चाहिए।
किसी के निजके काम में दस्तंदाजी करना समाज को उचित नहीं। इस बात को सिद्ध करने के लिए सब से मजबूत दलील यह है कि जिसका जो काम है वही उसे अच्छी तरह कर सकता है। यदि दूसरा आदमी उस में दखल देता है तो उसका दखल देना उन्नीस बिस्वे बेजा होता है। सामाजिक