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स्वाधीनता।


रहने को विवश न करें―इस इरादे से ऐसा कानून करना उचित और न्यायसङ्गत हो सकता है। पर इसमें एक बात है। वह यह कि दूसरों के द्वारा इस रीति के अनुसार काम दिये जानेमें हर आदमी का प्रत्यक्ष फायद है; अतएव इस तरह का कानून बनाना यद्यपि न्याय्य होगा; तथापि यदि किसी को कोई विशेष प्रकार का उद्योग पसन्द हो, और उसे वह इतवार के दिन करना चाहे, तो उसे वैसा करने से रोकना हरगिज न्याय्य न होगा और, दिलबहलाव की बातों को कानून के द्वारा रोक देना तो बिलकुल है न्याय्य न होगा। ऐसी बातों में थोड़ा भी प्रतिवन्ध करना अन्याय होगा। यह सच है कि कुछ आदमियों के दिलबहलाव के लिए औरों को, उस दिन, काम करना पड़ता है। पर यदि थोड़ेसे आदमियों ने खुशीले काम करना कुबूल किया; और उनको उनकी इच्छाके अनुसार काम छोड़ने की अनुमति हुई; तो बहुत आदमियों के आराम के लिए, इतवार के दिन, थोड़े आदामयों को काम करना मुनासिब है। यदि दिलबहलाव के काम उपयोगी हैं तो बहुत आदमियों के लाभ के लिए थोड़े आदमियों को काम करना और भी मुनासिब है। जो कामकाजी आदमी कहते हैं कि यदि इतवार के दिन सभी लोग काम करेंगे तो छः दिन की मजदूरी में सात दिन सबको कास करना पड़ेगा, वे सच कहते हैं। परन्तु इतवार के दिन बड़े कारखानों और दुकानों इत्यादि में काम बन्द रहनेसे थोड़े से आदमी, जो औरों का दिल बहलाने के लिए काम करेंगे, अधिक तनख्वाह पावेंगे। इस न वाह की अपेक्षा आराम से घर बैठे रहना जिन थोड़े से आदमियों को अधिक पसन्द हो वे मजे में घर बैठे रहें। उनको कोई रोकने का नहीं। इन थोड़े से आदमियों को सुस्ताने का मौका देने के लिए एक और युक्ति हो सकती है। वह हफ्ते में और ही एक आध दिन छुट्टी देकर इन लोगों को आराम से घर बैठे रहने देना है। यदि सब आदमी मिलकर ऐसी रीति चलाना चाहेंगे तो उसका चल जाना कुछ भी सुशकिल नहीं। इतवार के दिन दिलाबहलाव के लिए खेल-तमाशे करने की मनाई सिर्फ धर्म्म के आधार पर न्याय मानी जा सकती है। पर धर्म्म की दृष्टि से इस तरह के मनोरंजन निगिद नहीं हैं। फिर, जिन कारणों से कानून बनाना पड़ता है उनमें से धर्म्म-सम्मन्धी कारणों को शामिल करने के खिलाफ जो कुछ कहा जाय थोड़ा है। दो बातों के सुबूत अभी तक नहीं मिले। एक इस बात का कि किसी आदमी