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पांचवां अध्याय।

चीजें बेचनेवाला एक रजिस्टर खोले। उसमें वह बिक्री का ठीक ठीक समय, मोल लेनेवाले का नाम और पता, और बिकी हुई चीज की तौल और किस्म लिख ले। मोल लेनेवाले ले वह यह भी पूछ ले कि किस काम के लिए वह चीज दरकार है और जो जवाब उसे मिले उसको भी वह अपने रजिस्टर में दर्ज करले। यदि किसी डाक्टर का लिखा हुआ नुसखा न हो तो बेचनेवाला एक आदमी को गवाह भी करले। इससे यह लाभ होगा कि यदि पीछे से यह बात प्रकट हो जाय कि बिकी हुई चीज किसी बुरे काम में लाई गई है, अर्थात् उसकी सहायता से कोई जुर्म हुआ है तो गवाह इस बात को साबित कर देगा कि अमुक आदमी ने उस चीज को मोल लिया था। इस तरह के नियम करने से जो लोग कोई ऐसी चीज किसी उपयोगी काम के लिए मोला लेना चाहेंगे उनको उसके मिलने में विशेष कठिनता न पड़ेगी। परन्तु यदि कोई यह चाहेगा कि उस चीज का बुरा उपयोग करके मैं पकड़ा न जाऊं तो उसे अपने बचाव के लिए बहुत बड़ी कठिनता का सामना करना पड़ेगा।

समाज को इस का हक है, और वह हक स्वाभाविक भी है कि उसके विरुद्ध जितने अपराध—जितने जुर्म—होनेवाले हों उनसे बचने के लिए वह पहले ही से प्रबन्ध करे। इसके साथ ही समाज का यह भी कर्तव्य है कि यह हर आदमी के निजसम्बन्धी बुरे बर्ताव या दुराचार के विषय में किसी तरह का प्रतिबन्ध करने, या किसी तरह की सजा देने, की खटपट न करे। क्योंकि ऐसा करना उसको मुनासिब नहीं। पर इस दूसरे सिद्धान्त की हद पहले सिद्धान्त के ही आधार पर नियत की जा सकती है। अर्थात् अपनी हानि होने से अपने को बचाने का जो हक समाज को है उसी हक के आधार पर दूसरे सिद्धान्त की हद का अन्दाज किया जा सकता है। एक उदाहरण लीजिए। शराब पीकर उन्मत्त होना, मामूली तौर पर, कोई ऐसी बात नहीं है जिसके लिए कानूनी प्रतिबन्ध दरकार हो। परन्तु उन्मत्त होकर यदि किसी आदमी ने किसी दूसरे आदमी को पहले कभी तकलीफ पहुँचाई हो, और यह बात साबित भी हो चुकी हो, तो मेरी राय में, कानून के अनुसार उसका विशेष प्रतिबन्ध करना बहुत मुनासिब होगा। यदि वह शराब पीकर फिर उन्मत हो तो उसे सजा मिलनी चाहिए; और, यदि, उन्मत्तता की हालत में वह दुबारा कोई जुर्म करे तो पहले की अपेक्षा उसे अधिक कड़ी सजा दी जानी चाहिए। उन्मत्त होते ही जो लोग दूसरों को तकलीफ देने