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स्वाधीनता ।

करने के इरादे से उसे लेना चाहते हों उनको वह कठिनता आनी चाहिए। इस सिद्धान्त के अनुसार कारवाई होने के लिए सिर्फ एक ही साधन है। इस साधन का नाम बेन्थास ने " पूर्वसिद्ध साक्ष्य" अर्थात् " पहले ही से तैयार की गई गवाही" रक्खा है। यह नाम बहुत उचित है । इसके अनुसार कानून बनाये जाने से जहर मोल लेनेवालों की स्वाधीनता से अनुचित रीति पर दस्तंदाजी होने का कम डर रहेगा। प्रति- ज्ञापनों अर्थात् इकरारनामों के सम्बन्ध में इस साधन के आधार पर जिस तरह काररवाई की जाती है वह हर आदमी जानता है। जब कोई इकरार. नामा लिखा जाता है तब उस पर दस्तखत किये जाते हैं और गवाह इत्यादि भी कर लिये जाते हैं। यह एक मामूली बात है और मुनासित्र भी है। ऐसा करने से इकरारनामे की शर्ते बलपूर्वक भी पूरी कराई जा सकती हैं। -और, यदि, पीछे से किसी तरह का झगड़ा फसाद पैदा होता है तो इस बात का सबूत मिलता है कि सचमुच ही इस तरह का इकरार किया गया था और उस समय कोई ऐसी बात नहीं थी जिसके कारण वह इकरार कानून के अनुसार रद समझा जा सके। इससे झूठे इकरारनामे लिखनेवालों का बहुत प्रतिवन्ध होता है । कभी कभी ऐसा भी होता है कि लोग धोखा देकर वेफायदा इकरारनामे लिखा लिया करते हैं। इस तरह के इकरारनामे कानून की दृष्टि से हमेशा रद समझे जाते हैं । पर पूर्वोक्त नियम के अनुसार कारर. वाई करने से इस तरह की धोखेबाजी का कम डर रहता है। जिन चीजों को पाकर लोग जुर्म कर सकते हैं उनकी बिक्री के विषय में भी इसी तरह के प्रतिबन्ध करने से काम चल सकता है। उदाहरण के लिए इस तरह की

. ® अठारहवें शतक में बेन्थाम नाम का एक प्रसिद्ध ग्रन्थकार इंग्लैंड में हुआ है। उसे एकान्तवास बहुत पसन्द था। इसीसे वह अनेक उत्तमोत्तम ग्रन्थ लिख सका । राजनीति और धर्मशास्त्र में वह बहत प्रवीण था। उपयो। गिता-तत्त्व नाम का एक बहुत बड़ा ग्रन्थ उसने लिखा है। गवर्नमेंट किसे कहत हैं, कानून किसे कहते हैं, नीति और कानून के सिद्धान्त कैसे होने चाहिए, इत्यादि विषयों पर उसने कई ग्रन्थ लिखे हैं । वेन्थाम की प्रतिभा बहुत प्रसर थी। वीस ही वर्ष की उम्र में उसने एम० ए०. पास किया था। १८३२ ईसावी . के लगभग, कोई ८० वर्ष की उम्न में, उसकी मृत्यु हुई।