पृष्ठ:स्वाधीनता.djvu/२३१

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स्वाधीनता ।

में से जिसकी इच्छा हो वह उस प्रतिज्ञा से अपने को मुक्त न करे । बैरन हम्बोल्ट, जिसकी परमोत्तम पुस्तक से मैंने पहले, कहीं पर, एक जगह, एक अवतरण दिया है, कहता है कि जो प्रतिज्ञायें शारीरिक सम्बन्ध या शारीरिक मेहनत के विषय में की जाती हैं उनको एक नियत समय तक ही के लिए करना चाहिए। यह नहीं कि वे सदा सर्वदा के लिए की जायें । यदि ऐसी प्रतिज्ञाओं को कोई हमेशा के लिए करे भी तो भी कानून की दृष्टि से वे नाजा. यज समझी जायँ । ऐसी प्रतिज्ञाओं में से विवाह बन्धन की प्रतिज्ञा सब से अधिक महत्त्व की है। यह एक ऐसी प्रतिज्ञा है कि प्रतिज्ञा करनेवाला दोनों मनुष्यों अर्थात् स्त्री-पुरुपों, का मन यदि अच्छी तरह न मिला तो यह व्यर्थ जाती है। इस बन्धनरूपी प्रतिज्ञा के विषय में यह बहुत बड़ी विशेषता है अतएव यदि दो में से एक का भी मन न मिला, और स्त्री अथवा पुरुप है विवाह-बन्धन से मुक्त होने की इच्छा जाहिर की, तो उसे वैसा करने देन चाहिए । इस बन्धन से छूटने के लिए किसी तरह की बाधा डालना मुनासिक नहीं । यह विपय बहुत बड़े महत्त्व और झगड़े का है । इससे इस निबन्ध के बीच म इसका विवेचन विस्तार-पूर्वक नहीं किया जा सकता। अतएव दृष्टान्त के तौर पर इसकी जितनी जरूरत थी उतनी ही का उल्लेख करना मैं यहां पर बस समझता हूं। यह विवेचन बहुत ही संक्षिप्त और सिद्धान्तरूप है । इसीसे प्रमाण देने के बखेड़े में न पड़कर हम्बोल्ट साहब ने सिर्फ निर्णयरूपी सिद्धान्त देकर इस विषय को समाप्त कर दिया है। यदि विवाह-बन्धनविप- यक यह विवेचन सिद्धान्त के रूप में न होता तो इस बात को वह जरूर कुबूल कर लेता कि इतने थोड़े में और इतने सीधे सादे तौर पर इसका निर्णय नहीं हो सकता । जब कोई आदमी साफ साफ प्रतिज्ञा करके, अथवा किसी विशेष प्रकार का व्यवहार करके, दूसरे के मन में यह विश्वास पैदा कर देता है कि मैं अमुक तरह का वर्ताव तुम्हारे साथ करूंगा; अतएव जब इस प्रतिज्ञा के भरोसे उस दूसरे आदमी के मन में नई नई उम्मेदें पैदा हो जाती हैं, नई नई अटकलें वह लगाने लगता है, और अपने जीवन के कुछ हिस्से को वह एक नये सांचे में ढालने लगता है, तब नीति की दृष्टि से पहले आद. मी के सिर पर दूसरे आदमी के सम्बन्ध में एक नई तरह की जिम्मेदारी आ जाती है । यह जिम्मेदारी, कारण उपस्थित होने पर, रद की जा सक ती है-मेट दी जा सकती है; पर यह नहीं कि जब जिसके दिल में आवे उसे