पृष्ठ:स्वाधीनता.djvu/२३२

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पांचवां अध्याय।

मेट दे। उस पर विचार जरूर करना होगा। विचार में सबल कारण उपस्थित होने पर वह रद की जा सकती है। इसके सिवा, दो आदमियों में आपस की प्रतिज्ञा से उत्पन्न हुए सम्बन्ध का यदि तीसरे आदमियों पर कुछ असर हुआ; अथवा, यदि, उसके कारण, तीसरे आदमियों की स्थिति में कुछ फेरफेर हो गया; अथवा, यदि, जैसे विवाह में होता है, तीसरे आदमी (संतान) नये पैदा हो गये तो उन तीसरे आदमियो से सम्बन्ध रखनेवाली कर्तव्यरूपी एक नई जिम्मेदारी भी उन दोनों आदमियों पर आ जाती हैं। अतएव दो आदमी परस्पर जो प्रतिज्ञा करते हैं उस प्रतिज्ञा के तोड़ने या पूरा करने ही पर इस नई जिम्मेदारी का निर्वाह, या निर्वाह करने का तरीका, बहुत कुछ अवलम्बित रहता है। यहां पर तीसरे आदमियों से मतलब, परस्पर प्रतिज्ञा करने वाले दो आदमियों को छोड़ कर, और आदमियों से है। इस पारस्परिक प्रतिज्ञा या इकरार के विषय में जो कुछ मैंने लिखा उसका यह अर्थ नहीं, और मैं इस अर्थ को कुबूल भी नहीं करता, कि इस नई जिम्मेदारी के खयाल से प्रतिज्ञा करनेवालों को अपनी प्रतिज्ञा का पालन, चाहे कितना ही नुकसान क्यों न हो, करना ही चाहिए। मेरा मतलब सिर्फ इतना ही है कि इन बातों का विचार करना चाहिए। अर्थात् इस तरह की प्रतिज्ञा के सम्बन्ध में तीसरे आदमियों के हिताहित पर ध्यान देना बहुत जरूरी बात है। हम्बोल्ट के कहने के अनुसार यदि यह बात मान भी ली जाय कि कानून की रू की हुई प्रतिज्ञा के तोड़ने के हक में किसी तरह का फरक डालना मुनासिब नहीं, तो भी प्रतिज्ञा करनेवालों के नैतिक हक में जरूर ही फरक पड़ जाता है। जिस इकरार—जिस प्रतिज्ञा—का तीसरे आदमियों के हिताहित से बहुत घना सम्बन्ध हो उसे करने के पहले दोनों आदमियों को चाहिए कि वे इन सब बातों का अच्छी तरह विचार कर लें। पर, यदि, इस तरह का विचार कोई न करे, और उसकी इस भूल के कारण तीसरे को कुछ हानि पहुंचे, तो हानि की नैतिक जिम्मेदारी उसके सिर पर है। स्वतंत्रता के व्यापक सिद्धान्तों को उदाहरण द्वारा खूब स्पष्ट करने के इरादे से ही मैंने इतना विवेचन किया। अन्यथा इस विषय में इतना लिखने की कोई जरूरत न थी। क्योंकि विवाह-बन्धन के सम्बन्ध में विशेष वाद-विवाद करने से यह सूचित होता है कि विवाह की प्रतिज्ञा से बद्ध होनेवाले तरुण स्त्री-पुरुषों के हिताहित की परवा कोई चीज नहीं; उनके भावी बाल-बच्चों के हिताहित की ही परवा सब कुछ है।