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स्वाधीनता।


कोड़ी पैसा खर्च किये भी शिक्षा का प्रवन्ध कर देने पर, यह बात बाप की मरजी पर छोड़ दी गई है कि उसका जी चाहे तो वह अपने लड़के लड़कियों को शिक्षा दिलावे और न जी चाहे तो न दिलावे। इस बात को लोग अब तक कुबूल नहीं करते कि लड़कों को जीता रखने के लिए भोजन-वस्त्र इत्यादि की ही नहीं, किन्तु उनको पढ़ाने और मानसिक शिक्षा देने की भी काफी शक्ति यदि बाप में न हो तो लड़के पैदा करना मानो उन अभागी लड़कों के, और समाज के भी, विरुद्ध बहुत बड़ा नैतिक अपराध करना है; और यदि बाप अपने इस कर्तव्य को न पूरा करे तो, जहां तक हो सके, उसी के खर्च से लड़कों की शिक्षा का प्रबन्ध बलपूर्वक कराना गवर्नमेंट का कर्तव्य है।

यदि यह सिद्धान्त एक बार कुबूल कर लिया जाय कि बलपूर्वक सार्वज- निक शिक्षा दिलाना गवर्नमेंट का काम है तो, कैसी और किसी तरह शिक्षा देनी चाहिए इत्यादि बखेड़े की बातें और कठिनाइयां हमेशा के लिए दूर हो जायँ। इन्हीं झंझटों और कठिनाइयों के कारण आज कल जुदा जुदा पन्थों और सम्प्रदायों में झगड़े हो रहे हैं। इस सिद्धान्त के अनुसार काम शुरू कर देने से ये झगड़े भी दूर हो जायँगे और जो श्रम और समय खुद शिक्षा के काम में लगना चाहिए वह शिक्षाविषयक वाद-विवाद में व्यर्थ भी न जायगा। यदि गवर्नमेंट यह कानून जारी कर दे कि प्रत्येक बच्चे को अच्छी शिक्षा मिलनी ही चाहिए तो इस काम में उसे जो मेहनत पड़ती है वह वच जाय। इस बात को गवर्नमेंट माँ-बाप पर छोड़ दे कि जहां और जिस तरह से उनको सुभीता हो अपने बच्चों की शिक्षा का वे प्रबन्ध करें। फीस देकर गवर्नमेंट सिर्फ गरीब आदमियों के लड़कों की मदत करे, और जिनका कोई वारिस न हो उनकी शिक्षा में जो खर्च पड़े वह भी सब वही दे। इस बात के प्रतिकूल कोई उचित आक्षेप नहीं हो सकते कि गवर्नमेंट को प्रजा के द्वारा शिक्षा दिलानी चाहिए। हां; यदि, गवर्नमेंट शिक्षा का सारा प्रबन्ध अपने ही हाथ में लेले तो उस प्रबन्ध के प्रतिकूल आक्षेप जरूर हो सकते हैं। अपने लड़कों को शिक्षा देने के लिए लोगों को मजबूर करना एक बात है, और शिक्षा-सम्बन्धी सारा प्रबन्ध खुद ही करते बैठना दूसरी बात है। दोनों में वहुत अन्तर है। शिक्षा-सम्बन्धी सब तरह का, या वहुत कुछ, प्रबन्ध खुद करना गवर्नमेंट को उचित नहीं। इस बात को मैं और लोगों से भी अधिक नरा समझता हूँ।