स्वभाव की विलक्षणता, मत की भिन्नता और बर्ताव की विचित्रता के माहात्म्य के विषय में जो कुछ मैंने कहा है उससे शिक्षा की विचित्रता भी सिद्ध है। सच तो यह है कि शिक्षा की विचित्रता की महिमा और भी अधिक है। वह अनिर्वचनीय है। उसका बयान नहीं हो सकता। जैसे जुदा जुदा राय, बर्ताव और स्वभाव का होना जरूरी है वैसे ही जुदा जुदा तरह की शिक्षा का होना भी जरूरी है, और बहुत जरूरी है। गवर्नमेंट के द्वारा एक ही तरह की शिक्षा का जारी होना मानों सब आदमियों को एक सा कर डालना अथवा एक ही सांचे में ढालना, है। गवर्नमेंट से सम्बन्ध रखनेवाले लोगों में से जिनका पक्ष प्रबल होता है वे जिस तरह के सांचे को पसन्द करते हैं उसी तरह का वह बनता है। अर्थात् उनको जिस सांचे की शिक्षा अच्छी लगती है उसी के देने का वे प्रबन्ध करते हैं। चाहे राजा प्रबल हो, चाहे धर्म्माधिकारी अर्थात् पादरी-दल प्रबल हो, चाहे सरदार लोग प्रबल हों, चाहे वर्तमान पुश्त में से अधिक आदमियों का कोई समूह प्रबल हो—बात वही होगी। अर्थात् जिसको जिरस सांचे की शिक्षा पसन्द होगी वह उसी को जारी करेगा। जो जितना अधिक प्रबल और हुकूमत में जितना अधिक कामयाब होता है उसका सांचा भी उतना ही अधिक प्रयल और नमूनेदार होता है। समाज का मन और शरीर उसीके प्रतिबिंब हो जाते हैं। अर्थात् मन और शरीर दोनों से सारा समाज उस राजकीय प्रबल पक्ष के हाथ बिक सा जाता है—वह उसका गुलाम सा हो जाता है। यदि गवर्नमेंट अपनी इच्छा के अनुसार शिक्षा देना और उसका प्रबन्ध-सूत्र भी अपने हाथ में रखना ही चाहे तो नमूने के तौर पर पहले उसे वैसा करना चाहिए। अर्थात् परीक्षा के तौर पर और लोग जैसे जुदा जुदा तरीके से शिक्षा देते हैं वैसे ही गवर्नमेंट को भी करना चाहिए। ऐसा करने से जहां और लोगों के जारी किये हुए शिक्षा के तरीकों की जांच होनी वहां गवर्नमेंट के तरीके की भी हो जायगी और जो उसके गुण-दोष मालूम हो जायँगे। बहुत ही अच्छा हो यदि गवर्नमेंट अपनी शिक्षा के तरीके को सब से उत्तम करके बतलावे, जिसमें और लोगों को उससे उत्साह और उत्तेजना मिले, और वे भी उनी तरीके को आदर्श मानकर अपने अपने तरीके में मुनासिब फेरफार करें। यदि किसी समाज की दशा यहां तक बुरी हो—यदि किसी समाज की उन्नति इस दरजे तक पीछे
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पांचवां अध्याय।