बहुत ही भयङ्कर होगा। इस विषय में मेरा और हम्बोल्ट का (जिसका जिक्र पहले आचुका है) मत एक है। मेरी राय यह है कि जो लोग विज्ञान या किसी व्यापार, रोजगार या पेशे की शिक्षा पाकर परीक्षा देना चाहे और परीक्षा में वे पास हो जायँ, उनको गवर्नमेंट खुशी से सरटीफिकेट और पदक दें। परन्तु जिन लोगों ने ऐसी परीक्षा न पास की हो उनको उनका ईप्सित रोजगार करने से रोकना उसे मुनासिब नहीं। यदि सब लोग परीक्षा पास करनेवालों को अधिक पसंद करें, अतएव इससे यदि न पास करनेवालों का नुकसान हो जाय, तो उपाय नहीं। पर परीक्षा पास करनेवालों की जीविका के सुभीते के लिए गवर्नमेंट कोई विशेष नियम न बनावे; सिर्फ उन्हें सरटीफिकेट या पदक देकर वह चुप हो जाय।
स्वतंत्रता के सम्बन्ध में छोगों की कल्पनायें यथास्थान और निर्भम न होने से बहुत हानि होती है। माँ-बाप का कर्तव्य है कि वे अपने बाल-बच्चों को उचित शिक्षा दें; परन्तु स्वतंत्रता का ठीक मतलब समझ में न आने के कारण इस कर्तव्य की गुरुता लोगों के ध्यान में नहीं आती। इसी से शिक्षा के सम्बन्ध में माँ-बाप के लिए किसी तरह का कानूनी बन्धन भी नहीं नियत किया जाता। मॉँ-बाप के इस कर्तव्य के पोषक बहुत मजबूत प्रमाण दिये जा सकते हैं—यह नहीं कि कभी किसी विशेष कारण से दिये जा सकते हैं। और माँ-बाप पर कानूनी बन्धन डालने की जरुरत के भी बहुत से प्रमाण दिये जा सकते हैं। परन्तु स्वतंत्रता का ठीक अर्थ ही लोगों की समझ में नहीं आता। अतएव शिक्षा के विषय में ये पूर्वोक्त दोनों ही बातें नहीं होतीं। यह दशा सिर्फ शिक्षा ही की नहीं है। संसार में मनुष्य के जीवन से सम्बन्ध रखनेवाली महत्त्व की जितनी बड़ी बड़ी बातें हैं उनमें से एक नये जीव को जन्म देना—अर्थात् सन्तान उत्पन्न करना—भी एक है। और सच पूछिये तो यह बात बहुत बड़ी जिम्मेदारी की है। जिस जीव को जन्म देना है उसके पालन, पोषण और शिक्षण आदि का उचित प्रबन्ध करने की शक्ति जिसमे नहीं है उसके लिए इतनी बड़ी जिम्मेदारी लेना मानो उस नये जीव का बहुत बड़ा अपराध करना है। क्योंकि उसका मङ्गल या अमङ्गल इसी जिम्मेदारी पर अवलम्बित रहता है। फिर, जिस देश में आबादी बेहद बढ़ रही है, या बढ़ने के लक्षण दिखा रही है, उस देश में मतलब से अधिक सन्तान पैदा करके, प्रतियोगिता अर्थात् चढ़ा-ऊपरी के