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पांचवां अध्याय।


में रखने से लोग परस्पर एक दूसरे से अलग न होकर एक हो जाते हैं वे बातें उसकी समझ में आने लगती हैं। जिस देश के आदमियों में इस तरह के काम करने की आदत और शक्ति नहीं होती उस देश में स्वाधीन सामाजिक संस्था―स्वाधीन राजकीय सत्ता―का चलना असम्भव होता है। और, यदि, वह चलती भी है तो अच्छी तरह और बहुत दिनों तक नहीं चलती। उदाहरण के लिए उन देशों को देखिए जहां स्थानिक राजकीय काम करने का मौका सब लोगों को नहीं मिलता। अतएव होता क्या है कि यदि लोगों को राजकार्यविपयक स्वतंत्रता मिल भी जाती है तो वह बहुत दिन तक नहीं ठहरती। स्वतंत्रता-पूर्वक हर आदमी की बढ़ती होने, और अनेक तरह से अनेक आदमियों के द्वारा एक ही काम के किये जाने, से जो फायदे होते हैं उन का जिक्र इस लेख में आ चुका है। अपने स्थान, गांव, या शहर के राजकीय काम यदि सब लोग खुद करेंगे और कम्पनियां खड़ी करके, बहुत सा रुपया लगाकर, यदि वे बड़े बड़े व्यापार खुद करने लगेंगे, तो जिन फायदों का जिक्र ऊपर हो चुका है वे उन्हे जरूर होंगे। इसीसे बहुत आदमियों का मिल कर वनिज-व्यापार करना और स्थानिक कामों को खुद ही चलाना बहुत जरूरी बात है। गवर्नमेंट के जितने काम होते हैं उतने अकसर एक ही तरह के होते हैं; उनका सांचा―उनका नमूना―सब कहीं अकसर एक ही सा होता है। पर जो काम हर आदमी अलग अलग, या दस पांच आदमी मिलकर कम्पनी के रूप में, करते हैं उनके सांचे एक से नहीं होते। उनका तरीक़ा हमेशा जुदा जुदा होता है। इसी से उनके तजरुबे भी जुदा जुदा होते हैं। अथवा यों कहना चाहिए कि उनके तजरुवों की―उनके अनुभवों की―हद ही नहीं होती। ऐसे तजरुबे हमेशा विचित्रता से भरे हुए होते हैं। अतएव सब लोगों को फायदा पहुँँचाने के लिए गवर्नमेंट को चाहिए कि वह समाज, अर्थात् जन-समूह, की कोठी या अमानत-खाने का काम करे। अर्थात् जुदा जुदा आदमियों के जो जुदा, जुदा तजरुवे हों वे उसके पास जमा रहें―उनकी खबर उसे मिलती रहे―और वह उन तजरबों का सब लोगों में बराबर प्रचार करती रहे। उसका काम है कि हर तजरबेकार को वह दूसरों के तजरुबों से फायदा पहुँँचावे। उसे इस बात का कभी आग्रह न करना चाहिए कि जो रास्ता उसे पसन्द हो उसी पर सब लोग चलें।