तीसरा और सब से प्रबल आक्षेप यह है कि यदि गवर्नमेण्ट सब लोगों के काम-काज में दस्तंदाजी करने लगेगी तो उसकी सत्ता व्यर्थ बढ़ कर, बड़े बड़े अनर्थों का कारण होगी। इसलिए उसकी दस्तंदाजी को रोकने की बहुत बढ़ी जरूरत है। जैसे जैसे गवर्नमेंट की सत्ता बढ़ती है, अर्थात् जो काम गवर्नमेंट कर रही है उन कामों की संख्या जैसे जैसे अधिक होती है, वैसे सब लोग अधिकाधिक गवर्नमेंट की आंखों से देखते हैं—वैसे ही वैसे वे उस पर और भी अधिक अवलंबित हो जाते हैं। इस दशा में लोगों की समझ अधिकाधिक यह हो जाती है कि हमको सुख, दुःख, भय और आशा आदि की देनेवाली सिर्फ एक हमारी गवर्नमेंट ही है, और कोई नहीं। वही जो चाहे करे। अतएव जो लोग अधिक महत्त्वाकांक्षी और उद्योगी होते हैं वे गवर्नमेंट के आश्रित बन जाते हैं—वे उसकी अधीनता स्वीकार करके उसकी नौकरी कर लेते हैं। सढ़कें, रेल, बैंक, बीमे के दफ्तर, बहुत लोगों के मेल से बनी हुई कम्पनियां, विश्वविद्यालय और सब लोगों के फायदे के लिए स्थापित किये गये धार्मिक समाज यदि गवर्नमेंट के प्रबन्ध से चलने लगें, इसके सिवा, म्युनिसिपालिटी और लोकल बोर्ड जो काम करते हैं वह भी यदि गवर्नमेण्ट ही करने लगे; और इन सब महकमों और दफ्तरों इत्यादि में जो लोग काम करते हैं उनको नियत करना, उनकी तरक्की या तनज्जुली करना और उनको हर महीने तनख्वाह भी देना यदि गवर्नमेंट ही का काम हो जाय; तो अखबारों को चाहे जितनी स्वतंत्रता हो और कानून बनानेवाली कौंसिल में प्रजा के चाहे जितने प्रतिनिधि हों, वह देश सिर्फ नाम ही के लिए स्वतंत्र कहा जा सकेगा। ऐसे देश में राज्य-प्रबन्धरूपी यंत्र जितना अधिक सुव्यवस्थित और कौशल्य-पूर्ण, अर्थात् पेंचदार होगा—उसे चलाने के लिए खूब चतुर अधिकारी ढूंढ़ने की रीति जितनी अधिक निपुणतापूर्ण होगी—उतना ही अधिक अनर्थ होने की सम्भावना भी बढ़ेगी। कुछ दिन से इँगलैंड में इस बात पर विचार हो रहा है कि गवर्नमेण्ट के दीवानी महकमे में जितने आदमियों की जरूरत हो उतने प्रतियोगिता, अर्थात् चढ़ा-ऊपरी, की परीक्षा लेकर चुने जायँ। ऐसा करने से नौकरी के लिए सब से अधिक शिक्षित और बुद्धिमान लोग मिलेंगे। इस सूचना के अनुकूल भी बहुत कुछ चर्चा हुई है और प्रतिकूल भी। अर्थात् किसी किसी के मत में इस तरह की परीक्षा लेकर अधिकारियों के चुनने में
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