पृष्ठ:स्वाधीनता.djvu/२७२

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अब कहीं जी-में-जी आया है। यह अनन्त आकाश और यह स्वतंत्र वातावरण आज कहीं इतने दिनों बाद देखने को मिला है । मत-मजहब के कठोर कारागार से आज मेरा छुटकारा हुआ है । क्यों न अपने आपको बधाई दूं  ? हाँ, यह एक कैदखाना ही तो था । कितने साल सड़ना पड़ा उन अँधेरी तंग कोठरियां में ! और माज ? यह तो, भाई, आनन्द ही कुछ और है।