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पृष्ठ:स्वाधीनता.djvu/३१४

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विश्वेश ! तेरा संकेत जिस धर्म की ओर हुआ है,

वह विश्व-धर्म न तो नूतन ही होगा, और न पुरातन ही । विश्व उस सामान्य धर्म की साधना करता हुआ नवीनता में प्राचीनता, और प्राचीनता में नवीनता देखेगा। हाँ, उसमें असाधारण कुछ न होगा। परलोक-जैसी कल्पना के लिए उसमें स्थान न होगा। न तो उसमें नरक का भय होगा, और न स्वर्ग का लोभ । साधारण सत्य में असाधारण कल्पना का क्या काम ? जन्नत की हकी़कत जानते हुए भी यह कहकर अपने आप को तो न ठगना होगा, कि दिल के खुश रखने को यह एक अच्छा-सा ख़याल है ! कवतक दिल को इस ख़याली खिलवाड़ में उलझाये रहेंगे! स्वर्ग आखिर है क्या ? कभी न खत्म होनेवाली हमारी विलास- मयी वासनाओं का एक मायावी फ़िल्म । अपना दिल

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