[मूल-लेखक, राखालदास बंद्योपाध्याय]
यह एक ऐतिहासिक उपन्यास है। इसमें लेखक ने सत्रहवीं शताब्दी के फिरंगियों के जुल्म का सच्चा खाका खींचा है । इस पुस्तक को एक बार बढ़ना प्रत्येक भारतवासी का कर्तव्य है । लेखक की रचनाएँ कैसी होती है, यह पाठक करुणा और शाशांक को पड़कर अवश्य जान गए होंगे । पुस्तक के संबंध में विशेष लिखना व्यर्थ है । सी० पी० के शिक्षा-विभाग ने इसे भी ईनाम और लाइब्रेरी के लिये स्वीकृत भी कर लिया है । पुस्तक का मूल्य १॥)
[ लेखक, ठाकुर वावूनंदनसिंह प्राइवेट सेक्रेटरी, सर राजा रामपालसिंह साहेव बहादुर के० सी० आई० ई०, कुरी-सुदौली, नरेश]
जीवन-यात्रा में विचरनेवाले यदि अपने जीवन को महत्वपूर्ण देखना चाहते हैं, यदि वे संसार के वास्तविक सुख को प्राप्त करना चाहते हैं, तो उन्हें इसकी एक प्रति अवश्य मँगाकर पढ़नी चाहिए । पुस्तक पर लोगों ने उत्तमोत्तम राय भी दी है । मूल्य ॥)
अध्यक्ष
प्राचीन कविमाला कार्यालय
बनारस सिटी