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दूसरा अध्याय।


अपने देशवासियों की समझ के अनुसार जिन शब्दों के उच्चारण करने की गिनती उस समय घोर पाप में थी, क्राइस्ट के मुँह से उनके निकलते ही घृणा, भय और क्रोध से पागल होकर जिस पुरोहित ने अपने बदन के कपड़ों को, पापनिवारण करने के लिए, फाड़कर उनके टुकड़े टुकड़े कर डाले उसने वह काम उतना ही अन्तःकरणपूर्वक, बिना किसी बनावट के, किया जितना कि, आज कल के अकसर सब धर्मनिष्ट और इज्जतदार आदमी धर्म और नीति सम्बन्धी बातों को सच समझकर अन्तःकरणपूर्वक करते हैं। उस पुरोहित के इस कर्म का खयाल करके, इस समय, जिन लोगों को कंपकँपी छूटती है, जिनका बदन नफरत से थरथराने लगता है, वे यदि उस समय यहूदी होते तो वे भी ठीक वही करते जो उस पुरोहित ने किया। जो धर्माभिमानी क्रिश्चियन यह समझते हों कि अपने धर्म की रक्षा के लिए प्राण तक देने के लिए तैयार हुए लोगों को जिन्होंने पत्थरों से मार डाला वे उनसे बुरे थे-वे उनकी अपेक्षा बहुत अधिक दुराचारी थे-उनको याद रखना चाहिए कि जिस सेण्ट पॉल (अर्थात् पॉल नाम के साधू) को वे इतना पूज्य मानते हैं वह पत्थरों से उन मारनेवालों ही में से था।

यदि किसीका यह मत हो कि जो आदमी भूल करता है उसकी भूलका प्रभाव या असर उसकी बुद्धि और उसके सद्गुणों के अनुसार होता है, अर्थात् जो जितना अधिक बुद्धिमान और जितना अधिक सद्गुणी है उसकी भृल की मात्रा भी उतनी ही अधिक होती है तो मैं एक और उदाहरण देना चाहता हूं, और ऐसा उदाहरण देना चाहता हूं, जो बहुत ही ध्यान में रखने लायक है। अपने समकालीन लोगों में अपने को सबसे अधिक सभ्य और सबसे अधिक सच्चरित्र समझने का पात्र, यदि आज तकके सत्ताधारी और शक्तिमान् पुरुषों में से कोई हुआ है तो, रोम का शाहंशाह मार्कस आरेलियस हुआ है। जितने देश सभ्यता को उस समय पहुंचे थे उन सबका वह एकछत्र राजा होकर भी आमरण उसने अत्यन्त शुद्ध और निर्दोप न्याय


  • मार्कस आरेलियस बड़ा न्यायी, प्रजापालक और संयमी बादशाह था। परन्तु क्रिश्चियन धर्म का वह विरोधी था। क्रिश्चियनों को उसने बेहद् सताया।

स्वा०-४