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दूसरा अध्याय।


पीछे पड़ता है तब ये लोग, अपने ऊपर आये हुए दोष से बचने के लिए, इस बात को निरुपाय होकर कबूल कर लेते हैं कि मार्कस आरेलियस ने जो कुछ किया ठीक किया। परन्तु साथ ही उसके, डाल्टर जानसन के अनुयायी बनकर, वे यह भी कहते हैं कि क्रिश्चियन धर्म के खिलाफ जो कुछ किया गया उसले उसका फायदा ही हुभा नुकसान नहीं। क्योंकि सत्य जब तक दोहरूपी छलनी में नहीं छाना जाता तब तक उसका प्रकाश पूरे तौर पर नहीं पड़ता। सोने का खरापन आग में तपानेसे ही मालूम होता है। परीक्षा से ही सत्य की सत्यता सिद्ध होती है। परीक्षा चाहे जितनी कड़ी हो सत्य जरूर ही उसमें कामयाब होता है। कानून के द्वारा हानिकारक भूलों का प्रतिबन्ध किया जा सकता है-अर्थात् सजा देकर या सजा का डर दिखाकर और और बातें कभी कभी रोकी जा सकती हैं परन्तु इस तरह के बन्धन का जोर सत्य पर नहीं चलता; कानून के द्वारा सत्य का प्रचार नहीं रुक सकता। यह दलील और दलीलों की अपेक्षा अधिक मजबूत और अधिक ध्यान देने लायक है। इसलिए इसकी विवेचना की मैं जरूरत समझता हूँ; इलका में विचार करना चाहता हूं। जो लोग यह कहते हैं कि द्रोह या विरोध करने से सत्य का लोप नहीं होता; उसे हानि नहीं पहुंचती; इसलिए सत्य का द्रोह करना बुरा नहीं उन पर यह दोष नहीं लगाया जा सकता कि वे जान बूझ कर नई नई, पर सच्ची बातों के विरोधी हैं। अर्थात् उन पर यह इलजाम लगाना अनुचित है कि जिस बात की सत्यता पर उन्हें विश्वास है उसके सिवा और बातों की सत्यता को वे नहीं कबूल करना चाहते। परन्तु नई नई, पर सच्ची, बातों का पता लगाने के कारण मनुष्य-मात्र को जिनका कृतज्ञ होना चाहिए उन्हींसे द्वेष करना और उन्हीं को तकलीफ पहुंचाना बहुत बड़ी अनुदारता का काम है। इसमें कोई सन्देह नहीं। मनुष्यमान के फायदे की किसी ऐसी बात को, जो उस समय तक किसीको मालूम नहीं, ढूंढ निकालना और मनुष्य मात्र के ऐहिक अधवा पारलौकिक विषयों से सम्बन्ध रखनेवाली भूलों को दिखला देना बहुत बड़े उपकार का काम है। दुनिया में उससे बढ़कर और कोई उपकार नहीं। जो लोग डाक्टर जानसन की दलील के कायल हैं वे भी यह कबूल करते हैं कि जिन्होंने पहले पहल क्रिश्चियन धर्म स्वीकार किया और पहले पहल समाज की संशोधना की उन्होंने मनुष्यमान पर