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स्वाधीनता।


बहुत बड़ा उपकार किया। जिन लोगों ने सारे जगत् को इस तरह कृतज्ञता के पाश में बांधा, जिन लोगों ने दुनिया भर को इस तरह उपकार के बोझ से दबा दिया, उन्हींको आदमियों ने, मानों अपनी कृतज्ञता जाहिर करने ही के लिए, जान से मार डाला; और उनके साथ वे इस बुरी तरह पेश आये जिस तरह कि लोग अत्यन्त अधम अपराधियों के साथ पेश आते हैं। उनके उपकारों का आदमियों ने मानो यही इनाम देना मुनासिब समझा। इस शोचनीय भूला और इस घोर पाप का प्रायश्चित्त करने के लिए, मनुष्य मात्र को चाहिए था कि वे अपने सारे बदन में राख और कमर में वल्कल लपेटकर अफसोस करते। परन्तु, नहीं, जिन लोगों की समझ डाक्टर जानसन की ऐसी है वे इसकी कोई जरूरत नहीं समझते। उनके मत में ये जितनी शोचनीय घटनायें हुईं सब ठीक हुई; सब नियमानुसार हुईं; सत्र न्यायानुकूल हुईं। अह, कैसे आश्चर्य की बात है! जिस नियमके वे लोग कायल हैं उसके अनुसार नये सिद्धान्तों का पता लगानेवालों की वही दशा होनी चाहिए जो दशा लोक्रियन लोगों के जमाने में नये सत्यशोधकों की होती थी। ग्रील देश में एक सूबा था। वहांवाले लोक्रियन कहलाते थे। उन लोगों में यह चाल थी की जब कोई आदमी कोई नई बात कहना चाहता था, या किसी नये कानून के बनाये जाने की सूचना देता था, तब उसे सब लोगों के सामने, अपने गले में एक रस्सी लटकाकर खड़ा होना पड़ता था। फिर वह अपनी सूचना की आवश्यकता और सत्यता को सप्रमाण सिद्ध करने की कोशिश करता था; उसके पुष्टीकरण में जो कुछ उसे कहना होता था उसे वह कहता था। उसके प्रमाणों-उसकी दललों-को सुनकर सब लोग, उसी जगह उसी क्षण, यदि उसकी सूचना नामंजूर कर लेते थे तो उसकी गरदन से लटकती हुई वह रस्सी खींचकर फौरन ही कड़ी कर दी जाती थी। उसे तत्काल ही फांसी की सजा मिल जाती थी। जिन लोगों की यह राय है कि मानवजाति पर उपकार करनेवालों के साथ-उसका हित-चिन्तन करनेवालोंके साथ इसी तरह पेश आना चाहिए, वे, सेरी समझ में, उस उपकार की-बहुत ही कम कीमत समझते हैं। मुझे विश्वास है, इस तरह के आदमी बहुधा यह खयाल करते हैं कि नये नये सिद्धान्तों का पता लगाना पहले जमाने में फायदे की बात थी-उस समय उनका मालूम होना सबको इष्ट था-पर अब वह बात नहीं रही। अब नये सिद्धान्तों की जरूरत नहीं। जितने सिद्धान्त इस समय प्रचलित हैं उतने ही काफी हैं। अब और अधिक न चाहिए।